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बोलासे गंगा

“मेरा मन भी अब बड़ा हलका मालूम होता है। अब मरना मुफ्त नहीं कहा जायेगा”।

“अब हम जितने दिन जियेंगे, जापानी फासिस्तोंको मार मार नफे पर नफे कमाते रहेंगे।”

सुमेर दौ सौ दिन जीता रहा। उसने सौ जापानियोंको नष्ट किया है। अन्तिम दिन बंगालकी खाड़ीमें उसे काम मिला। एंंडमनके पच्छिम जापानी जंगी बेड़ा जा रहा था। सुमेरने चालीस हजार टनका एक जंगी महापोत देखा। बैङेके आस पास रक्षक विमान उड़ रहे थे, किन्तु दूर बादलोंमेंसे झाँकती सुमेरकी आँखोंको उन्होंने नहीं देखा।

सुमेरने अपने गनरको टारपीडो तैय्यार रखनेकी आज्ञा दी। बादल वहाँसे बेड़ेके ऊपर तक चला गया था। सुमेरनै पूरी गतिसे अपने विमानको चलाया, दुश्मनके विमानोंको पता नहीं लग सका, कि कब कोई विमान जंगी पोतके ऊपर पहुँचा, कब भारतीय विमान वाहकने टारपीडो लिये दिये अपने विमानको महापोत पर झोंक दिया। सुनेर और उसके गनरका पता नहीं लगा, किन्तु साथ ही वह उस जंगी महापोतको भी लेते गये।