पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३८२

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सुमेर ३८१ मापक यत्रके जो कि सुमेरके आगे लगा हुआ है। तीन सौ मील प्रतिघटेकी चालसे बने यानको उड़ाना ! सुमेरका ख्याल एक बार उस युगमें चला गया, जब कि मनुष्य पत्थरके अनगढ़ हथियारोको हीअपनी सबसे बड़ा आविष्कार, सबसे बड़ी शक्ति समझता था, किन्तु आज वह आकाशको राजा है। मानवता कितनी उन्नत हुई है। किन्तु, उसी वक्त उसका ख्याल मानवताके शत्रु फासिस्टों की ओर गया, जो कि मनुष्यके दिमागकी इस अद्भुत देनको मानवताके पैरोमें गुलामीको वेड़ियाँ डालनेमें लगा रहे हैं। सुमेरका बदन सिहर गया, जव छुपाल आया कि जापानी फासिस्त भारतके पड़ोसी बर्मा में आ गये हैं। उस वक्त उसकी नज़रोंके सामने कदमकुआँके वह घर और उनमे रहनेवाली वे स्त्रियाँ एक एक कर आने लगीं; जिनमें एक उसकी प्रिया है, और दूसरी भी कितनी ही हैं। जिन्होंने इस अछूत माके मेधावी आदर्शवादी लड़कैको बेटा और भाईके तौरपर ग्रहण किया । फासिस्तों के लिए अपार घृणासे उसका दिल खौलने लगा। उसी वक्त उसे सामने तीन लाल सूर्य वाले विमान उड़वे दीख पड़े। सुमेरने अपने मशीनगनको झोनसे कहा, और दो मिनटमै फासिस्त विमानों के बीच पहुँच गया। बात करनेमें देर लगती है, लिखने में तो और भी, किन्तु पता नही लगा, सुमेरके गनर शरीफने किस तरह अपनी मशीनगनको टू-इ किया, और किस तरह सुमेरने अपने विमानको ठीक जगहपर पहुँचाया, और किस तरह दस मिनटके भीतर ही तीनों जापानी फासिस्त विमान परकटे चीलकी भाँति समुद्रमें गिरे। सुमेरको अपना जौहर दिखलानेका यह पहला मौका था, किन्तु इस सफलता पर उसे बहुत संतोष हुआ । उसने विमानको लौटते वक्त शरीफसे कहा शरू भाई इसने अपनी कीमत अदा करा ली । इसमेंसे हर एक यदि तीन तीन फासिस्तको खतम करे तो कितना अच्छा हो ?