पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३८०

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'सुमेर : ३७६ अमेरिकाकी जनता सर्वस्वकी बाजी लगाकर लड़ रही है उसे पक्षकी झीतम मुझे जरा भी सन्देह नहीं है । समद और रूपकिशोरकी इधर पाकिस्तानको लेकर बहुत चल रही थी आज रूपकिशोरने फिर उसी सवालको छेड़ दिया । “गाँधवादी स्वराज्य हो या साम्यवादी, इसमे हमारा और तुम्हारा मित्र सुमेर मतभेद हो सकता है, किन्तु, स्वराज्य भारतके लिए होगा, इसमे तो सन्देह नहीं है । | भारत भी एक निराकार शब्द है रूप बाधू ! जिसके नाम पर बहुत-सी मूल भुलैयोंमें डाला जा सकता है, स्वराज्य भारतीयोंके लिए चाहिये, जिसमें भारतीय अपने भाग्यका आप निर्णय करें, और उसमें भी आसमानसे टपका स्वराज्य चन्द बड़े आदमियों तक ही सीमित नहीं होना चाहिये ।" । | रूप-खैर, वैसे भी ले लीजिये, किन्तु स्वराज्यमे जीवित भारत को टुकड़े-टुकड़े तो नहीं होने देना चाहिये ।। सुमेर-“यह फिर भूल-भुलैयाके शव्दको इस्तेमाल कर रहे हैं । भारतका खडित और अखड रहना, उसके निवासियों पर निर्भर है। मौके समय-हिन्दकुशसे परे आमू दरिया भारतको सीमा थी, और भाषा, रीति-रिवाज इतिहासको दृष्टिले अफगान जाति (पठान) भारत अन्तर्गत हैं, दसवी सदी तक काबुल हिन्दू-राज्य रहा, इस तरह हिंदुस्तान की सीमा हिन्दूकुश है। क्या अखड हिन्दुस्तान वाले हिन्दूकुश तक दावा करनेके लिए तैयार हैं ? अफ़गानकी इच्छाके विरुद्ध नहीं; वो सिंधुके पश्चिम बसने वाले सरहदी अफगानों (पठान)को भी उनकी इच्छाके विरुद्ध अखंड हिन्दुस्तानमे नहीं रखा जा सकता ।'फिर वही बात सिंध, पंजाब, काश्मीर, पूर्वी बंगालमें क्यों नही लेनी चाहिये ?' • रूप"अर्थात् उन्हें भारतसे निकल जाने देना चाहिये । सुमेर-“हाँ, यदि वे इसीपर तुले हुए हैं। हम जनताकी लाई जुड़े रहे हैं, इसका अर्थ है, किसी देशका जनताको उसकी इच्छाके