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अमृताश्व ३५

  • माँ बापके समय हमारे घरमें अश्वोंकी कृच्छ्रता थी, इसीलिये यह नाम रख दिया।

लेकिन अब तो ऋद्धाश्व होना चाहिए । “अच्छा, चलो भीतर ।। “किन्तु, मित्र | इसी देव दुमकी छायामें हरी घास पर क्यों न ?" “ठीक, सोमा ! तो लाओ, सोम और माससे यहीं मित्रको तृप्त करे । । | किन्तु कृच्छ्र । तू अश्वमे जा रहा था ।” चला जाऊँगा, आज नहीं कल वैठ ऋज्राश्व ! सोमा सोमकी मशक और चषक (प्याले ) लिये आई। दोनों मित्रोके बीच अमृताश्व भी बैठ गया। सोमाने सोम (भाँगके रस) और चषकको धरती पर रखते हुये कहा-बिस्तर ला दें, ज़रा ठहरो ।। "नहीं सोमे ! यह कोमल हरी घास विस्तरसे अच्छी है ।ऋज्राश्वने कहा। “अच्छा, यह बतला ऋज़ ! लवणके साथ उवाला मास खायेगा, या आगमें भूना ? बछेड़ा आठ महीनेका था, मास बहुत कोमल है । "मुझे तो सोमे | भूना बछेड़ा पसन्द आता है। मैं तो कभी-कभी सम्पूर्ण वछेडेको आग पर भूनता हूँ। देर लगती है, किन्तु मास बहुत मधुर होता है। और तुझे भी मेरे चषकको अपने होठोंसे मीठा करना होगा ।। "हाँ, हाँ, सोमे ! ऋज़ बहुत समय बाद आया है ।'–कृच्छाश्त्र ने कहा। "मैं जल्दी आती हूँ, आग बहुत है, मास भूनते देर न लगेगी ।” "कृच्छ्राश्वको चषक पर चषक उँडेलते देख ऋञ्चाश्वने कहा“क्या जल्दी है ?

  • सोम मधुरतम है। सोमाका हाथ और सोम ! सोम अमृत है। यह सोमपायीको अमृत बनाता है। पी सोम और अमृत बन जा ।