पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३७९

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बोलासे गंगा साथी सुमेर ! तुमसे कितनी ही बातोंमें मैं सहमत हुँ,और कितनी ही बातमें असहमत ।, किन्तु तुम्हारी रायकी मैं कितनी इज्जत करता हैं, यह तुमसे छिपा नहीं है। मैं भी समझता हूँ, इस संसारव्यापी०संघर्ष में हम तटस्थ नहीं रह सकते। लेकिन दोस्त ! जब चुनाव आदि तथ होकर तुम मरती हो गये, तब तुमने इमें खबर दी; कुछ पहिले तो बतलाना चाहिये था । “पहिले बतलाता, और चुनावमें छूट जाता है इसलिए भरतीके बाद चौबीस घंटेकी उड़ान करके मैंने मित्रोंको जाहिर किया । अब ज्ञाहर करने में कोई इर्ज भी नहीं, क्योंकि परसों ही मैं जा रहा हूँ। अम्बाला उड़न्तु स्कूल में ।" । और माक खबर दे दी है। “माके लिए जैसाही पटना वैसा ही अम्बाला, जब तक मै खोल कर साफ़ न लिख दें कि मैं लड़ाई में मृत्युके मुंह में जा रहा हूँ, तब तक उसके लिए एक सा ही है। खोलकर लिखनेका भतलब है, सदाके लिये उसकी नींदको हराम कर देना। मैंने निश्चय किया है कि जब तक जीवित रहुँगा, पत्र लिखता रहूँगा, उससे उसको सन्तोष रहेगा ।” "मुझे तुम्हारे साहसका बारबार ख्याल आता है ? - *मानव होने की कीमतको इमें हर वक्त चुकानेके लिए तैयार रहना चाहिये, समद ! और फिर एक आदर्शवादी मानव होने पर तो हमारी जिम्मेदारियाँ और बढ़ जाती हैं १ । । तो तुम्हारा विश्वास है, यह लड़ाई जबर्दस्त उथल-पुथल जायगी। पिछली. लड़ाईने भी कुछ कम नहीं किया, सोवियत रूसका ‘अस्तित्व-दुनियाँके छठे हिस्सेपर समानताको राज्ययह कम चीज़ नही है; किन्तु इस लड़ाई के साथ जो परिवर्तन उपस्थित होगा, वह नई धरती, नये असमानको लायेगा, दोस्त जिधर सोवियत राष्ट्र है, जिधर लालसेना है; जिधरकी विजयके लिए आन चीन, इंगलैंड,