पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३७६

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• सुमेर बल्कि, वही एकमात्र राष्ट्र है। उसे ही दुनियाके किसान मज़दूर अपनी आशा, अपना राष्ट्र कह सकते हैं। डेढ़ शताब्दीकै लाखों, करोड़ों की कुर्बानियोके बाद मानवताके लिए, सनातन शोषितोंके लिए यह साम्यवादी प्रदीप पृथिवीपर आलोकित हुआ, एक बार इस प्रदीपको बुझ जाने दीजिए, फिर देखिए कितने दिनोंके लिए दुनिया अंधेरे में चली जाती है। हम जीते जी इस भीषण कोडको अपनी आँखोंके सामने होते चुपचाप नहीं देख सकते है। लेकिन, सुमेर भाई ! और भी तो समाजवादी देशमें हैं; वे भी दुनियासे शोषणको मिटाना चाहते हैं । जिनको सेवाग्रामसे फैलता अभृकारही प्रकाश मालूम होता है; ऐसे समाजवादियोंसे शैतान बचाये। ऐसे तो हिटलर भी अपनेको समाजवादी कहता है । गाँधीजीके चेले भी उन्हें समाजवादी कहते हैं। समाजवादी कहनेसे कोई समाजवादी नहीं होता । जानते हैं हिटलर, तोजो की विजयसे हिन्दुस्तानका पूँजीवाद और पूँजीपतिवर्ग बर्बाद नहीं, बल्कि वह और मज़बूत होंगे; किन्तु फासिस्त-दस्यु मजदूरों, किसानोंको सास तक लेने नहीं देंगे, और साम्यवादियोको क्या हालत होगी, इसके लिए, इटली और जर्मनीको हालको इतिहास देखिये । वही क्यों ? सिर्फ फ्रासमें हर रोज़ जो कम्युनिस्व गोलीसे उड़ाये जा रहे है; उन्हींको देख लीजिथे । जो अपनेको माक्सवादी कहकर अपनेको इस युद्धसे अलग रखना चाहता है, वह या तो अपनेको धोखा दे रहा है या दूसरोंको । हिटलर और तोजोके शासनमें मार्क्सवादी समाजवादियोंकी जानकी कीमत एक गोलीमात्र है, इसे हम सब अच्छी तरह जानते हैं। फिर कोई समाजवादी यदि अपनेको तटस्थ कह सकता है, तो चमगादड़ की नीतिसे ही । सोवियतके ध्वसके बाद जो समाजवादका झंडा उड़ाने की हाँक रहे हैं, उन्हें हम तो पागल कह सकते हैं या धोखेबाज़ । “तो आपका ख्याल है, इस युद्धमे कोई तटस्थ रही नहीं सकता। “हाँ, यह मेरी पक्की राय हैं, कि जिसका मस्तिष्क ठीकसे काम कर