पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३७४

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सुमेर देश है जहाँ धर्मके पक्कै विश्वासी नहीं हैं ! गाँधीजीके मित्र भूतपूर्व लार्ड-इर्विन तथा आजके लार्ड हेलीफेक्स एक ज्ञवर्दस्त ईसाई सन्त हैं। आज तक धर्मकी दुहाई देकर ही घर्माण अँगरेज़ोंको साम्यवादसे दूर रनेके लिए यह संत लोग प्रचार करते रहे। अरब, तुक, ईरान अफगानिस्तानके मुसलमान हिन्दी मुसलमानोंसे कम घर्माण नहीं हैं। लाखौं सुन्दरियोंके स्वेच्छासे कटवाये कैशकै रस्सैसे जहाँ मन्दिर बनाने लिए लकड़ियाँ ढोई गई, उस जापानको आप कम धर्मप्राण नहीं कह सकते । सभी शोषक जबर्दस्व धर्माण होते हैं, औझा जी ! और सभी शोषण-शत्रु धर्म-शत्र घोषित किये जाते हैं। यदि साम्यवादको विदेशी ही मान लें, तो भी जैसे ईसाई, इलाम जैसे विदेशी धर्म, रेल, तार, हवाई जहाज़, कल-कारखाने जैसी विदेशी चीज़ हमारी आँखोंके सामने स्वदेशी बनकर मौजूद है, वैसे ही साम्यवाद भी स्वदेशी हो जायेगाबल्कि हो गया है। पटनामें शामके वक्त घूमनेके लिए लॉन और हार्डिंग-पार्क दो ही जगह हैं, और दोनों ही को ऐसी मनहूस हालत में रखा गया है, कि वह स्वयं किसी को आकर्षित कर खींच लाने का सामर्थ्य नहीं रखती; तो भी जिनको दिल-बद्दलाव चहलकदमी, दोस्तोंसे मिलनेकी ख्वाहिश होती है, वे इन्हीं जगहोंमें पहुँचते हैं। अँधेरा हो रहा था, तो भी तीन तरुणकी बातचीत खतम नहीं हो रही थी, और वे बाँकीपुर (पटना) के लॉन मैदान में डटे हुए थे। एक कह रहा था| "सायी सुमैर | मै फिर भी कहूँगा, तुम एक बार फिर सोचो, तुम बहुत भारी कदम उठाने जा रहे हो ।” | "मौतसे खेलनेसे बढ़कर कृदम उठानेकी क्या बात हो सकती है ? और रूप ! इसे तो पक्का समझो, कि मैंने जल्दी नहीं की है। कदम ही यह जल्दीका नहीं हो सकता था।"