पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३७३

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३७२ वोल्गासे गंगा “जला हुआ दिल और जवानी उसके पीछे है ओझा जी ! इस लिए मेरी बातसे कष्ट हुआ हो तो क्षमा कीजियेगा । | "नहीं मैं बुरा नहीं मानता है किन्तु यदि चखें-कर्वे जैसी भारतकी चीजका आप फिरसे स्थापित होना संभव नहीं समझते, तो क्या विदेशी साम्यवादके लिए भारतकी भूमिको उर्वर समझते हैं ?" । “शोषकको जो बात पसंद नहीं वही विदेशी और असंभव है। चूंकि इनकी कृपा करोड़पति हो गये, इसलिए सैठ लोगोंके लिए चीनीकी मिले विदेशी नहीं रहीं; कपड़े, जूट, काग्रन्न, सीमेंट, लोहे, साइकिल, बहाङ्ग, हवाई जहाज, मोटर, काँच, बिजलीके सामान, फौंटनपेन, जूते की, बिजली या भापसे चलनेवाली लाखों-करोड़ोंकी फैक्टरियाँ विदेशी नहीं रहीं । रेडियो, टेलीविज़न (दूरदर्शक-रेडियो ), फ़िल्म, टैंक आदि जैसे ही सेठोंके पाकेटमें मजदूरों की कमाईके करोड़ों रुपये चुपकेसे डालने लगेगे, वैसे ही उनकी विदेशीयता जाती रहेगी । शोषणमें सहायक सारे विदेशी यंत्र उनके लिए स्वदेशी हैं, किन्तु शोषण-ध्वंसक उपाय---- साम्यवाद-सदा स्वदेशी बना रहेगा । ईमानदारी इसे कहते हैं। ओझा जी ! साम्यवाद धर्मका विरोधी है, और भारत सदासे धर्मप्राण रहा है, जरा इस दिक्कतका भी ख्याल करे सुमेर जी ।" आप कालेजकी सारी पढ़ी-पढ़ाई विद्याको भूल गया कहते हैं, इसलिए मैं क्या कहूँ ? जब धर्मका नाम आप लोग लेते हैं, तो आपके सामने सिर्फ हिन्दू धर्म रहता है । गाँधीजीने बजाजजीके गोसेवा-मण्डलको भी आशीर्वाद दिया है जिसमें मास छोड़ सब चीज गायकी ही खानेकी प्रतिज्ञा करायी जाती है। पेशाब और पाखानेके भी यदि गोभक्षक, गोभक्षकका भेद करें तो भारत में गोभक्षक आने से बढ़ जायेंगे, हमारी जाति भीगोभक्षक है, आप जानते हैं। वैसे भी तो भारतमें एक चौथाईके करीब लोग मुसलमान हैं, करोड़के करीब ईसाई, और कुछ लाख बौद्ध । यदि इन धर्मों को भी आप धर्म में शुमार करते हैं, तो प्रथिवीका कौन