पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३७१

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३७० वोल्गासें गंगा । वर्ष पुरानी ताल-पत्र पर लिखी पुस्तक देखी है। उस वक्त सेठोंके बहीलाते, तथा नालंदा विद्यार्थियोंकी पुस्तकें और नोटबुके इसी तालपत्र पर लिखी जाती थीं । गाधी जी सात जन्म तक ‘कहते रह जायें “लौट चलो तालपत्रके युग’, मगर दुनिया 'टीटागढ़के कागज़, मोनों टाइप, रोटरी छापेखानेके शुगसे लौटकर तालपत्रके युगमें नहीं जायेंगी। न जानेमे उसका कल्याण है क्योंकि इससे सेवा-मकी भजनावली फैलनेमे भले हीं दिक्कत न हो, किन्तु हर एक व्यक्तिको शिक्षित-सी भी आज तकके अर्जित ज्ञान-विज्ञानमें देखना असम्भव होगा । फासिस्त लुटेरोके टैंकों, हवाई जहाज़ों, पनडुब्बियों, गैसोंके मुकाविलेमें यदि गाँधी जी पत्थरके हथियारोंकी और लौटने की कोई बात करे, तों इसे रत्ती भर अकल रखनेवाली जाति भी नहीं मान सकेगी, क्योंकि वह सीधी आत्महत्या होगी ।' | "तो आप अहिंसाके महान् सिद्धान्तको भी नहीं मानते हैं?

  • गाँधी जीकी अहिंसा, खुदा बचाये उससे । 'जो अहिंसा किसानों और मज़दूरो पर कांग्रेसी सरकारों द्वारा चलाई जाती गोलियोंका समर्थन करे

और फासिस्त'लुटेरोंके सामने निहत्था बन जानेके लिए कहे, उसे समझना हमारे लिए असम्भव है। मैं आपके पहले प्रश्नको खतसकर देता हूँ। सेठ जानते हैं कि चखें-कर्धेसे उनके कारखानोंका बाल भी बाँकी नहीं हो सकता-चढ़े-कचें जब तक मिलोंके मालसे सस्ते और अच्छे कपड़े बाज़ारमें नहीं ला सकते, तब तक उनकी अस्तित्व सेठोंके दान पर निर्भर है। चख़-कर्धाबाद शोषणकी असली दबा साम्यवादके रास्ते मेभारी बाधक है । कितने ही लोग बेवकूफी से समझते हैं कि शोषण रोकनेके लिए साम्यवाद-'कल-कारखानों पर जनता का अधिकार-से अच्छी दवा चल्ल-कवाद है। बस इसी नीयत से दुनियाको मिलका कपड़ा पहनानेअलि सेंद चखकै भक्त हैं और गाँधी जी इसे भली भाँति समझते हैं ।”

  • यह उनकी नीयत पर हमला हैं १३ । । । " . उनकी एक-एक हरकेत मुझे शोषितों और भारतमें सबसे