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वोल्गासे गंगा “बहुत अच्छा, मुझे पानी भरकर घर में पहुँचाना है। अमृताश्व खाने बैठा है।” बात करते हुये दोनों नदी तक जा, घर लौटे। ऋज्राश्वने कहाअमृताश्व बड़ा हो गया । “हाँ, तूने तो कई वर्षसे नहीं देखा ?' चार वर्षसे १ इस वक्त वह बारह वर्ष का है। सच कहती हूँ ऋज्राश्व ! रूपमे वह तेरे समान है।" कौन जाने, उस वक्त मै भी तो तेरा कृपा-पात्र था। अमृताश्व इतने दिनों कह रहा है। "नानाके यहाँ, वाल्हीकों में।" , सुन्दरीने जल-पूर्ण मशक तबूमे रखी और अपने पति कृच्छाश्व को ऋञ्जाश्वके आनेकी खबरदी। दोनों और उनके पीछे अमृताश्व भी, तम्बूसे बाहर निकले । ऋञ्जाश्वने सम्मान प्रदर्शित करते हुये कहा-कह, मित्र कृच्छ्राश्व ! तू कैसे रहा है । “अग्नि देवकी कृपा है, ऋज्राश्व ! आ जा, फिर अभी सोम ( भाँग ) को घोटकर मधु और अश्विनी-क्षीरके साथ तैयार किया है।" “मधु-सौम ! किन्तु इतने सबेरै कैसे १० मै घोड़ोंके रेवड़में जा रहा हूँ। बाहर देखा नहीं, घोड़ा तैयार है ?" “तो आज शामको लौटना नही चाहता है।

    • शायद । इसीलिये तैयार है यह सोमकी मशक और मधुर अश्व• मास ।”

अश्व-मास !! “हाँ, हमारे पशुओं पर अग्नि देवकी कृपा है। मैं तो अश्वोंको ही अधिक पालता हूँ । "हाँ, कृच्छ्राश्व | तेरा नाम उल्टा है ।”