पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३६९

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३६८ वोल्गासै गंगा बन जायें । अछूतोंके पास यदि एक दो देशी रियासतें नहीं, तो एक-दो छोटी-मोटी ज़मींदारियाँ ही आ जायें । मगर इससे दस करोड़ अछूतोंकी दयनीय दशा दूर नहीं की जा सकती।" तो आपका मतलब है शोषण बद होना चाहिए ? “हाँ, गरीबों की कमाई पर मोटे होनेवालोंका भारत में नामो-निशान यदि न रहे, तभी हमारी समस्या हल हो सकती है ।" “गाधी जी इसी लिए तो हाथके कपड़े, हाथके गुड़, हाथके चावलसभी हाथकी चीज़ों के इस्तेमाल करने पर जोर देते हैं।" “हाँ विइलों और बजाजके रुपयेके बल पर ! जब खादीसंघको लाख दो-लाखका घाटा होता है, तो कोई सेठ उठकर चेक काट देता है। यदि यकीन होता, किं गाँधी चखें-कर्धेसे उनकी मिले बन्द हो जायेगी और मोतीके हार और रेशमकी साड़ियाँ सपना हो जायेगी, तो याद रखिए शोझा जी ! कोई सेठ-सेठानी गाधी नीकी आरती उतारने न अाती । | "तो आप गाँधीवादियोको पूँजीपतियोंका दलाल समझते हैं ? “मुझे इसमें ज़रा भी संदेह नहीं है। जो कुछ कोर-कसर थी, उसे उन्होंने ‘घर फेंक' नीतिके विरुद्ध हिन्दुस्तानी सेठोंके हु हु में शामिल हो पूरा कर दिया। "तो आप चाहते हैं, जहाँ जापानी पैर रखनेवाले हों वहाँके कलकारखानोंको जलाकर खाक कर दिया जाय १ भारतीयोंने कितने सकट, कितने श्रमके साथ ये कारखाने कायम किये। ज़रा आप इसर भी विचार कीजिए सुमेर जी । | "मैंने सकट और श्रम पर विचार किया है, और इसपर भी कि गाधीवादी मशीनों के अस्तित्वको एक क्षण के लिए भी बर्दाश्त नहीं करनेकी बात करते रहे हैं। माथ ही यह भी जानता हूं--पेठ लोग चाहते हैं कि हमारे कारखाने सुरक्षित ही जापानियोंके हाथों में चले जायें । जापानी पूँजीवादके जबर्दस्त समर्थक हैं । जापानी रेडियोको