पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३६८

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सुमेर गाधी जी मालिक बनानेके लिए नहीं कहते है। ज़मींदारों, पूँजीपतियों, राजाओंको वली---संरक्षक–गार्जियन-- कहनेका दूसरा क्या अर्थ हो सकता है ? गांधी जीका हमारे साथ प्रेम इसी लिए हैं कि हम हिन्दुओं में से निकल न जायें। पूनामें आमरण । अनशन इसीलिए किया था कि हम हिन्दुओंसे अलग अपनी सत्ता न कायमकर ले । हिन्दुओंको इज़ार वर्षोंसे सस्ते दासोंकी जरूरत थी, और हमारी जातिनै उस स्थानकी पूर्तिकी। पहले हमें दास ही कहा जाता था अब गांधी जी 'हरिजन' कहकर हमारा उद्धार करनेकी बात करते हैं । शायद हिन्दुओंके बाद हरि ही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन रहा है। आप खुद समझ सकते हैं, ऐसे हरिका जन बननी हुम कब पसंद करे गे १ तो आप भगवान्को भी नहीं मानते है" *किस उपकार पर १ हज़ारों वर्षों से हमारी जाति पशुसे भी बदतर अछूत, अपमानित समझी जा रही है, और उसी भगवान्के नाम पर, जो हिन्दुओंकी बड़ी जातियोंकी फरा-जरा-सी बात पर अवतार लेते रहे, रथ हाँकते रहै; किन्तु सैकड़ों पौढ़ियोसे हमारी स्त्रियोंकी इज्जत विगाड़ी जाती रही-हम बाज़ारोंमे सोनपुर के मेले पशुओंकी तरह बिकते रहे, आज भी गाली-मार खाना, भूखे मरना ही हमारे लिए भगवान्क दया वतलाई जाती है। इतना होने पर भी जिन भगवान्के कान पर जूं तक नहीं रेंगी, उन्हें माने हमारी बला ।” "तो आप डाक्टर अम्बेडकरके रास्तेको पसद करते होंगे ? । “गलत । डाक्टर अम्बेडकर भुक्तभोगी हैं। मुझे भी प्रथम द्वितीय वर्षमै हिन्दू लड़कोंने होस्टलमे नहीं रहने दिया, किन्तु, मैं अम्बेडकरके रास्ते और काग्रेसी अछूत नेताओंके रास्तोमें कोई अन्तर नहीं देखता है। और मेरी समझमे वह रास्ता गाँधी-बिड़ला-बजाज रास्ते से भी मिल जाता है। उसका अर्थ है, अछूतों में से भी कुछ पाँच-पाँच छः-छः इज़ार महीना पानेवाले बन जाये । अछूतमें भी बिड़ला-बजाज नही तो हजारीमल ही