पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३६७

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वोल्गासे गंगा इन वर्षों में साफ मालूम होने लगा है, कि यह स्कूल कालेजकी पढाई अनर्थकारी विद्या है।" "तो अपने वह विद्या भुला दी होगी १० "क़रीब करीब । बिल्कुल भूल जाती, मैं कोरी सलेट हो जाता, तो कितना अच्छा होता । उस वक्त मैं सच्चाईको अच्छी तरह पकड़ पाता। अर्थात् बुद्धि के नहीं बल्कि श्रद्धाके पथ पर आंख मैदकर आरूढ़ होते हैं । “श्रद्धाके पथको आप बुरा समझते हैं, सुमेर बाबू है "मै बाबू नहीं हूँ ओझा जी! मै एक साधारण चमारका लड़का हूँ। मेरे घर में एक धूर भर भी अपनी जमीन नहीं हैं, थी, किन्तु ज़मींदारने जर्बदस्ती दख़ल कर-वहाँ अपना बगीचा बनवा लिया। माँ कैट-पीसकर अब भी पेट पालती हैं। मुझे पहले एक सज्जनकी कृपा, फिर स्कालरशिप यहाँ तक जाई । इस तरह आप समझ सकते हैं कि मै बाबू शब्दका मुस्तइक़ नहीं हूँ ।” । आदतवश समझिये सुमेर जी ! लेकिन मुझे आपको जो परिचय अभी मिला है, उससे मुझे बड़ी खुशी हुई है। जानते हैं, गाची जीके एक शिष्य को, हरिजन तरुणको इस प्रकार संग्राम करते देख कितना आनंद होता होगा।' ' श्रोझा जी ! मैं आपसे और बातें करना चाहता हूँ, और स्नेहके साथ; इसलिए यदि आप मेरे मतभेदको पहले हीसे जान ले, तो मैं समझता हूँ, अच्छा होगा । मै हरिजन नामसे सख्त घृणा करता हूँ । मै 'हरिजन' पत्रको बिल्कुल पुराण पथी–भारतको अंधकार युगको और खींचनेवाला पत्र--समझता हूँ, और गांधी जीको अपना ज़बर्दस्त दुश्मन "...•• आप अपनी जाति पर गांधी जीका कोई उपकार नहीं मानते ११ “उतना ही उपकार मानता हूँ, जितना मज़दूरको मिल-मालिकका मानना चाहिए ।