पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३६४

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सफदर कोई आया हो, तो उसे कमाने वालेके स्वार्थसे अपने स्वार्थको अलग नहीं रखना चाहिये ।” । शङ्कर और सफ़दर बरावर पुस्तकोंके पढ़ने तथा देशको आर्थिक, सामाजिक समस्याओं पर मिलकर विचार किया करते थे। पहले तो दूसरे उनकी बातोंको कम सुननेके लिये तैयार थे; किन्तु जब ३१ दिसम्बर ( सन् १६२१ ई० )की आधी रात भी बीत गई और जेलका फाटक नहीं खुला, तो उन्हें निराशा. हुई, और जब चौरीचौरामें आतंकित, उत्तेजित जनता द्वारा चंद पुलिसके आदमियोंके मारे जानेकी ख़बर सुनकर गाँधीजीने सत्याग्रह स्थगितकर दिया तो कितने ही लोग गंभीरतासे सोचने पर मजबूर हुए, और उनसे कुछ आगे चलकर सफदर और शकर की इस रायसे सहमत हुये-“क्रान्तिको शक्तिस्रोत सिर्फ जनता है, गाँधीका दिमाग़ नहीं, गाँधीने जनताकी शक्ति के प्रति अविश्वास प्रकटकर अपनेको क्रान्ति-विरोधी सावितकर दिया ।"