पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३६२

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सफदर महीने बीतते-बीतते उन्हें अवधीकै बहुत भूले और नये शब्द याद हो गये, और ग्रामीण जनता उनकी एक-एक वातको झूम-झूमकर सुनती थी । दिसम्बर (सन् १९२० ई०) के पहले सप्ताहमें अपने यहाँके बहुतसे राष्ट्रकर्मियोंकी भाँति शङ्करके साथ सफ़दर भी साल भरकी सजा पा फैज़ाबाद जेल मैज दिये गये । चम्पा और सकीना उसके बाद भी काम करती रहीं; किन्तु उन्हें नहीं पकड़ा गया। । जेलमें जाने पर सफदर नियमसे एक घंटा चर्खा चलाते थे। जो लोग उनके गाँधी-विरोधी राजनीतिक विचारोंको जानते थे, उनके चखें पर कटाक्ष करते थे। सुफदका कहना था—'विलायती कपड़े के बायकाटको मैं एक राजनीतिक हथियार समझता हूँ, और साथ ही मैं यह भी जानता हूँ कि हमारे देश में अभी पर्याप्त कपड़ा तैयार नहीं होता, इसलिये हमें कपड़ा पैदा भी करना चाहिये; किन्तु जिस वक्त देश में मिले पर्याप्त कपड़ा तैयार करने लगे, उस वक्त भी चर्खा चलानेका मै पक्षपाती नहीं हैं।" | जैलम वैठे-ठाले लोगोंकी संख्या ही ज्यादा थी। ये लोग गाँधीजीके साल भरमें स्वराज्यके वचन पर विश्वासकर बैठे हुये थे, और समझते ये जेलमे आ जानेके साथ ही उनका काम ख़तम हो गया। अभी तक गाँधीवादने पाख, घोखा और दिखलावेका ठेका नहीं लिया था, इसलिये कह सकते थे कि असहयोगी कैदियोंमे ईमानदार राष्ट्रकर्मियोंकी ही संख्या ज्यादा थी । तो भी सफदर और शङ्करकों यह देखकर क्षोभ होता था, कि उनमें अपने राजनीतिक ज्ञानके बढ़ानेकी और शायद ही किसीका ध्यान हो। उनमें से कितने ही रामायण, गीता या कुरान पढते; हाथमे सुमिरनी ले नाम जपते; कितने सिर्फ ताश और शतरंजमे ही अपना सारा समय ख़तम कर देते । एक दिन गाँधीवादी राजनीतिके दिग्गज विद्वान् विनायकप्रसादसे सफ़दरक छिड़ गई। शङ्कर भी उस वक्त वहीं थे ! विनायकप्रसादने