पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३५९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

वोल्गासै गंगा नौकर-चाकर चले गये, और जब सकीना सफ़दर के पास आकर क्सिी अनिष्टकी आशंकासे सिकुड़ी जाती-सी लेट रही, तब सफदरने अपनी जबान खोली_प्यारी सकीना । मैंने एक बड़ा निश्चय कर डाला है, यद्यपि मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूँ कि ऐसे निश्चयके करनेमें मुझे तुम्हें भी बोलनेका मौका देना चाहिये था। मैने ऐसा अपराध क्यों किया, इसे तुम आगेकी बातसे समझ जाओंगी । सक्षेपमें वह निश्चय है—मैं अब देशकी स्वतत्रताका सैनिक बनने जा रहा हूँ।” सकीनाके हृदय पर ये शब्द बज्रसे पल्ले; इसमे सन्देह नहीं, और इसीलिये वह मुंहसे कुछ बोल न सकी । उसे चुप देखकर सफदरने फिर कहा-“किन्तु प्यारी सकीना । तुम्हारे लड़कपनसे सुखके जीवन को देखते हुए मै तुम्हें काँटोंमे घसीटना नहीं चाहता ।” सकीनाको मालूम हुआ उसके हृदय पर एक और जबर्दस्त चोट लगी, जिससे पहली चोट उसे भूल गईं, और उसका जागृत आत्मसम्मान तो एकाएक उसके मुंहसे कहला गया--"प्रियतम ! क्या तुमने सचमुच मुझे इतना आराम-तलब समझा है कि तुम्हें काँटों पर घसटते देख मै पलंग पर बैठना चाहूंगी । सफ़दर ! मैंने तुम्हे दिलसे प्यार किया है, तो वह मुझे तुम्हारे साथ कहीं भी जानेमे मेरी सहायता करेगा। मैंने अधर-बत्ति बहुत खर्च कीं, मैंने अपने समयका बहुतसा हिस्सा बनाव शृगारमे खर्च किया, मैंने कठोर जीवनसे परिचय प्राप्त करनेका कभी प्रयत्न नही किया; किन्तु सफदर ! मेरे तुम्हीं सब कुछ हो, इसलिये नहीं कि मैं तुम पर भार होऊँ, बल्कि यह इसलिये मै कह रही हैं कि मै तुम्हारे साथ रहूंगी, और जैसे तुमने इस जीवनमे पथ-प्रदर्शन किया, वैसे ही आनेवाले जीवनमें भी पथ-प्रदर्शन करना । सफदको इतनी आशा न थी, यद्यपि वह यह जानते थे कि सकीनाका संकल्प बहुत दृढ़ होता है। सफ़दरने फिर कहा-."मैने नये मुकदमें लेने बन्दकर दिये हैं। पुरानोमे से भी कितनको दूसरोंके सुपुर्द करने जा रहा हूं। मुझे आशा है, इसी हमें कचहरीसे मुझे छुट्टी हो