पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३५८

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सुफदर उसी रातसे सकीनाने सफदरके चेहरेको ज्यादा उत्फुल्ल देखा था; किन्तु वह यही समझती थी कि यह देवर शङ्करके साथ बातचीतका परिणाम है । सफदरके लिये सबसे मुश्किल था अपने निश्चयको सकीना तक पहुँचाना । वैसे सफ़दर भी लाड़-प्यारम पले थे, किन्तु वह गाँव रहने वाले थे और नगी गरीबीको सहानुभूतिपूर्ण आँखों से देखते-देखते वह अपने में विश्वास रखते थे कि जिस परीक्षामें वह अपनेको डालने जा रहे हैं, उसमें उत्तीर्ण होंगे । किन्तु सुकीनाकी बात दूसरी थी। वह शहरके एक रईसके घराने में पली थीं। उसके लिये कहा जा सकता था-'सिय न दीन्ह पग अवनि कठोरा । इतवारको भी सफदर हिम्मत नहीं कर सके । सोमवारको चीफकोर्ट में वह अपने कुछ नज़दीकी दोस्तों को भी जब अपने निश्चयको हुना चुके तो सकीनाको निश्चय सुनाना उनके लिये लाज़िमी हो उठा। उस रातको उन्होंने लखनऊमें मिलने वाली सर्व श्रेष्ठ शम्पैन मॅगवाई थी । सुकीनाने समझा था कि आज कोई और दोस्त आवेगा, किन्तु जब उन्होंने खानेके बाद वैराको शम्पैन खोलकर लानेको कहा, तो सकीनाको कुछ कौतूहल हुा । सफदरने सकीनाके श्रोठों में शुम्पेनके प्यालेको लगाते हुए कहा-"प्यारी सकीना ! मेरे लिये यह तुम्हारा अन्तिम प्रसाद होगा । शराब छोड़ रहे हो प्रियतम ?" "हाँ, प्यारी ! और भी बहुत कुछ; किन्तु तुम्हें नहीं । अवसे तुम्हीं मेरी शाब रहोगी, तुम्हारे सौदर्यको पीकर ही मेरी आँखें सुख हो जाया करेगी ।” सुकीनाके चेहरेको उदास पड़ते देख फिर कहा--प्यारी । सकीना ! अभी हम लोग इस शम्पेनको ख़त्म करें, हमें और भी बातें करनी हैं । | सकीनाको शराबमे लुत्फ नहीं आया, यद्यपि सफदरने उमर खय्याम की क्रितनी ही रुबाइयाँ उसके प्यालों पर खर्च की ।