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सफ़दर

  • शिक्षा-प्रणाली दोषपूर्ण हो सकती है शङ्कर, किन्तु आजके स्कूलों कालेजोंसे हमें साइसका परिचय होता है, जिसके बिना आज मनुष्यमनुष्य नहीं रह सकता । हमारी मुकि जब भी होगी, उसमें साइंसका खास हाथ होगा । दिन-दिन बढ़ती मानव-जातिकी भविष्यको समृद्धि उसी साइंस पर निर्भर हैं, इसलिये साइसको छोड़ कर पीछे हटना आत्महत्या है। स्कूलों, कालेजोंको वृन्द कर चखें कपॅकी पाठशाला कायम करना बिलकुल अंधकार-युगकी ओर खींचनेकी चेष्टा है । क्रान्ति सैनिक बननेके लिये विद्यार्थियोंका आह्वान करना बुरा नहीं है इसे तो तुम भी मानौगै शङ्कर !

तरूर ! और दूसरे बायकाट १२ । कचहरियका बायकाट ठीक, इसके द्वारा हम अपने विदेशी शासकका अपनी क्षमता और रोष दिखलाते हैं। विलायती मालका बायकाट भी अँगरेजी बनियांके मुंह पर जबर्दस्त चपत हैं, और इससे हमारे स्वदेशी उद्योग-धंधेको मदद मिलेगी । "तो सम्फू भाई । मैं देखता हूँ, तुम बहुत दूर तक चले गये हो ।” * अभी नहीं, अब जाना चाहता हूं।" जाना चाहते हो ! "पहले यह बताओ, हम क्रान्ति-युगसे गुजर रहे हैं कि नहीं है। 'मैंने तुमसे कितने ही सवाल पूछने हीके लिये पूछे, सफ्फू भाई ! नही तो, जिस दिनसे रूसी क्रान्तिको खवर मुझे मिली, तवसे ही मैंने हुँद-देड़ कर साम्यवादी साहित्यको पढ़ना और उससे भी ज्यादा अपनी समस्याओं पर साम्यवादी दृष्टिसे विचार करना शुरू किया। मैं समझता हैं भारत और विश्वके कल्याणका वही रास्ता है। मैं अभी तक सिर्फ इस सन्देहम पड़ा हुआ था कि गाँधीको असहयोग उस महान् उद्देश्यम साधक होगा या नहीं, किन्तु जैसे ही तुमने क्रान्तिवाहन जनताकी ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया वैसे ही मेरा सन्देह दूर हो गया। मैं गाँधी को क्रान्तिका योग्य वाहन नही समझता, सम्फू भैया ! तुमसे साफ कहूँ,