पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३५४

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सफदर ३५३ धरती बॅट चुकी थी। इसलिए उन्हें लड़कर ही छीना जा सकता था । इसीलिए उपनिवेशोंके मालिकों -इग्लैण्ड और फ्रांस जर्मनी की अन गई। खैर, जर्मनी उसमें असफल रहा; लेकिन साथ ही साम्राज्यबादकी नींदमें जबर्दस्त खलल डालने वाला एक और दुश्मन पैदा हो गया--यानी साम्यवाद-चीज़े नफाके लिये नहीं, बल्कि मानव-वशको सुखी और समृद्ध बनाने के लिए पैदाकी जायें । म सोनमें सुधार होता है, फैक्टरी बढ़ती है, माल ज्यादा पैदा होता है और उसके लिए ज्यादा बाज़ार की जरूरत होती है। फिर उसे खरीदने के लिए हाथ में पैसेकी जरूरत होती है जिसके लिये हर खरीदारको पूरा वेतन मिलना चाहिए । जितना ही हाथमे पैसा कम रहेगा, उतना ही माज़ ख़रीदा नहीं जायगा। उतना ही माल बाज़ार में या गोदाममे पड़ा रहेगा --मंदी होगी उतना ही मालको कम पैदा करना होगा, उतने ही कारखाने बन्द रहेंगे, उतने ही मज़दूर बेकार होंगे, उतना ही उनके पास मान खरीदने के लिए पैसा नही रहेगा; फिर माज़ क्या ख़ाक ख दंगै, फैक्टरी क्या धूज़ चलेगो १ साम्यवाद कहता है, नफा का ख्याल छोड़ो। अपने राष्ट्र या सारे संसारको एक परिवार मानकर उसके लिए जितनी आवश्यकताएँ हों उन्हें पैदा करो, हर एक से उसकी क्षमता अनुसार काम लो, हर एककी उसकी आवश्यकता के मुताबिक जीवनोपयोगी सामग्री दो; जय तक आवश्यकताको पूरी करने भर के लिए कल-कारखाने और कारीगर इजीनियर न हों, तब तक काम अनुसार दो। और यह तभी हो सकता है, जब कि वैयक्तिक सम्पतिका अधिकार न भूमि पर रहे, न फैक्टरी पर, अर्थात् सारे उत्पादन साधनों पर उस महा परिवारका अधिकार हो ।” 'कल्पना सुन्दर है। “यह अब कल्पना ही नहीं है, शङ्कर ! दुनिया के छठे हिस्सेरूस पर नवम्बर सन् १९१७ ई० से साम्यवादी सरकार कायम हो चुकी है। आज भी पूँजीवादी दुनिया मानवताकी उन एक मात्र शासको