पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३५२

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सफ़दर ३५१ और अंग्रेजीमें उसकी जगह 'इम्प्रेस' रखना, इसमें भी कोई रहस्य तो नहीं है ? हो सकता है। खैर, कैसर शब्दके साथ सन् १८७१से हम साम्राज्यवादकै युगमें प्रविष्ट होते हैं । इंग्लैण्ड पहले आता है, पराजित प्रजातन्त्रीय फ्रास कुछ सँभलनेके वाद सन् १८८१ ई०में निस ( अफ्रीका ) पर अधिकार जमा साम्राज्यवादका प्रारम्भ करता है। और नई फैक्टरियों और पूंजीपतियोंसे लैस जर्मनी भी सन् १८८४ ६० से उपनवेशको माँग पेशकर साम्राज्यवादकी स्थापनाका प्रयत्न करता है। • लेकिन इसका भारत में अंग्रेजोंकी नीति-परिवर्तनसे क्या सम्बन्ध है । | *नित्य नये सुधार होते यन्त्रों, बढ़ते हुए कारखानों तथा उनसे होनेवाले पूँजीके रूपमे नफेको लगानेका कोई इन्तजाम होना चाहिये । सन् १८७४-८० ई० में डिसाइलीके मन्त्रि-मण्डलने उसे जाकर नाश कर डाला । सन् १८८० --६२ तक रही न उदारदली ग्लैडेस्टन सरकार ! वह डिसाइलीके बढ़ाये कदमसे पीछे नहीं जा सकती थी। हाँ, पूँजीकी नगी साम्राज्यवादी दानवताको कुछ भद्र वेष देनेकी ज़रूरत थीं, जिसमें साधारण जनता भड़क न उठे। इसके लिये डिसाइलीने ‘भारत-सम्राज्ञी'का नाट्य तो रच ही डाला था। अब उदार दल वालोंको कुछ और उदारता दिखलानेकी ज़रूरत थी। यह उदारता आयलैंडके 'होमरूल-बिल'के रूपमे आई; किन्तु आयलैंडवा प्रश्न आजतक वैसा ही पड़ा हुआ है। इसी 'उदारतासे फायदा उठाकर इम हिन्दुस्तानी साहबने सन् १८८५ ई० में अपनी काग्रस खड़ी कर डाली । कांग्रेस वस्तुतः ब्रिटिश उदार दलकी धर्मपेटी बनकर पृथ्वी पर आई, और एक युग तक उसने अपने धर्मको निबाहा। किन्तु सन् १८६५से सन् १६०५ तक दस वर्षों के लिये ब्रिटेनमें फिर टोरियोंकी सरकार आ गई, जिसने एल्गिन और कृर्जन जैसे संपूत भारत मैजे, जिन्होंने साम्राज्यवादको गाँठों को और मज़बूत करनेकी कोशिशकी, किन्तु परिणाम उल्टा हुआ।