पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३४८

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सफ़दर नहीं होता शंकर क्रान्ति जिस भारी परिवर्तनको लाती है, वह किसी एक या आधे दर्जन महान् व्यक्तियोंके सामथ्यसे भी बाहरकी चीज़ है । मैं आजके इस आन्दोलनकी बुनियाद पर जव विचार करता हूँ, तो इसी नतीजे पर पहुँचता हूँ। तुम्हें मालूम है, सन् १८५७ ई० के स्वतन्त्रता-युद्ध ( जिसका एक केन्द्र यह लखनऊ भी था, बल्कि यह भी कह सकते हैं कि लखनऊका अंग्रेजों द्वारा हड़पा जाना उस युद्ध के नज़दीककै कारणमेसे एक था } के नेता पद-भ्रष्ट सामन्त थे; किन्तु वह लड़ा गया था साधारण लोगों के प्राणको बाजी लगाकर। हमारी कई कमजोरियों के कारण हम सफल नहीं हुए। अंग्रेजोने पराजितों पर खूनी गुस्सा उतारा । खैर, मैं कहना यह चाहता हूँ कि सन् १८५७ ई०के बाद यह पहला समय है, जब कि जनताको देशकी स्वतन्त्रताके युद्धमे शामिल किया जा रहा है। तुम्हीं बोलो, इतिहासके एक अच्छे विद्यार्थी होनेके नाते, क्या तुम बतला सकते हो किसी और ऐसे आन्दोलनको, जब कि जनताने इस तरह भाग लिया १) सफू भाई, नागपुर काग्रेस ( १६२० ) और कलकत्ता काग्रेस भी बीत गई। गाँव-गाँवकी जिस उथल-पुथलका तुम जिक्र करते हो, उसे मैने भी अपनी आँखों देखा है, और मैं मानता हूँ, वह अनहोनी चीन हुई, लेकिन इतनी बढ़के पार हो जाने पर भी, इसी लखनकम कितनी बार विदेशी कपड़ोंकी होली जल जाने पर भी तुम्हारे कान पर जें तक नहीं रेंगी, और आज तुम क्रान्तिके भेवरमें पड़े जैसे आदमीकी तरह बात करते हो ? “तुम्हारा कहना ठीक है. शङ्कर ! मेरे छोटे भैया, सचमुच यह भंवर मेरे पैरोको उखाड़ना चाहती है। लेकिन इस सँवरको मैं एक छोटी-सी स्थानीय भेवर नहीं समझता; यह एक बड़ी मॅवरसे सम्बद्ध होकर प्रकट हुई है। हर युगकी सबसे जबर्दस्त क्रान्तिकारी शक्ति जनता लेकर प्रकट होती है ।