पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३४७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

३४६ वोल्गासै गंगा "देवर, आज तुम्हें जल्दी तो नहीं है। भाभीके हाथकी चाकलेटकी पुञ्चिङ्ग कैसी रवैगी है। सफ़दर–नेकी और पूछ-पूछ ! सकीना-"मैं पहले जान लेना चाहती हूँ, देवर साहबका कहीं ठिकाना नहीं, अब लोप हो जायें ।" । | शंकर-मेरे साथ इंसाफ नहीं कर रही हो, भाभी ! एक भी मिसाल तो दो, जब कि मैंने तुम्हारे हुक्मको मानने से इंकार किया हो ?? सकीना--"हुक्मअदूलीकी बात नहीं कर रही हूँ, देवर | लेकिन हुक्म सुननेसे बच निकलना भी तो कसूर है ।। शंकर----"मैं अपनी जनरल भाभीका हुक्म सुननेके लिये तैयार हूं।" सकीना-"अच्छा, तो जा रही हैं। खानेके साथ पुडिङ्ग' खानी होगी ।" सकीना जल्दीसे निकल गई । सफ़दर और शंकरके वार्तालापने गम्भीर रूप धारण किया। सफ़दरने कहा-“शङ्कर, हम बिलकुल एक नये क्रान्ति-युगमें दाखिल हो रहे हैं। मैं समझता हूँ, सन् १८५७ ई०के बाद यह पहला वक्त है जब कि हिन्दुस्तानकी सर जमीन जड़से डगमड होने लगी है। “तुम्हारा मतलब राजनीतिक आन्दोलनसे है न, सुफ्फू भाई राजनीतिक आन्दोलन बहुत साधारण शब्द है, शकर ! सन् १८८५ ई० में काँग्रेस क्लायम हुई, जब कि वह अँग्रेज आई० सी० एस० पैशनरोंकी कृपा-पात्र थी। तब भी उसके क्रिसमसके मनबहलाव वाले ब्याख्यानों और बोतलोंको आन्दोलनका नाम दिया जाता था । यदि तुम उसे ही आन्दोलनका नाम देना चाहते हो, तो मैं समझता हूँ, हम आन्दोलनसे अब क्रान्तिके युगमें प्रविष्ट हो रहे हैं।” "क्योंकि गाँधीजीने तिलक-स्वराज्य-फण्डके लिये एक करोड़ रुपया जमाकर लिया, और स्वराज्यका हल्ला ज़ोर-शोरसे सुनाई देने लगा.१२ - क्रान्ति था क्रान्तिकारी आन्दोलनका अाधार कोई एक व्यक्ति