पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३४६

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सफ़दर ३४५ स्कूलके हेडमास्टर होते । किन्तु जान पड़ता है, वह ज़िन्दगी भर सहायक शिक्षक ही बने रहना चाहते हैं । हाँ, उन्होंने एक बार दोस्तोंकी मदद ली थी, जब लखनऊसे बाहर उनका तबादला हो रहा था। नम्रता के साथ आत्म-सम्मानका भाव भी शंकरसिंहमें बहुत था, जिसके कि सफदर जबर्दस्त कदद थे। बारह सालकी उम्रसे स्थापित मैत्री आज बीस साल बाद भी वैसी ही बनी हुई थी। अभी दो-चार ऊपरी बातें हुई थीं कि धानी रंगकी साड़ी और लाल ब्लाऊज़ पहिने सकीना आ पहुँची। शंकरचे खड़े होकर कहा**भाभी सलाम | भाभीने मुस्कराकर 'सलाम' कहकर जवाब दिया । एक वक्त था, जब कि एक धनी सरकी ग्रेजुएट पुत्री सकीनाको, इस गॅवारसे लगते शिक्षकके साथ सफ़दर की दोस्ती बुरी लगती थी सकीना बापके घर से ही पर्दे में नहीं रही, इसलिये शंकरसिंहके सामने होने, न होनेका कोई सवाल ही नहीं था । तो भी छः महीने तक उसकी भौहें तन जाती थीं, जब वह सफदरकै साथ बेतकल्लुफ़ीसे शंकरको काम करते देखती; किन्तु अन्तमें उसे सफ़दर के सामने कबूल करना पड़ा कि शंकर वस्तुतः हमारे स्नेह-सम्मानके पात्र हैं। । और अब तो सकीनाने शंकरके साथ पक्का देवर-भाभीका नाता कायमकर लिया था। अपनी इच्छासे अभी अपनेको सकीनाने सन्तानहीन बना लिया है; किन्तु कभी-कभी वह शंकरके बच्चेको उठा लाती है। इधर छः वर्षोंसें शकर समझते हैं कि शकरकी उन पर कृपा है। उनके घरमें कोई न कोई दो सालसे नीचेका बच्चा तैयार रहता है। | सुकीनाको साहबकी पिछले एक हफ़ेकी गम्भीरता कुछ चिन्तितकर रही थी। उसे आज शंकरको देखकर बड़ा संतोष हुआ। क्योंकि वह जानती थी कि शकर ही हैं जो साइबके दिलके बोझको हलका करनेमें सहायता है सकते हैं। सकीनाने शंकरकी और नज़र करके कहा---