पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३४३

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काल-सन् १९२३ ई० एक छोटा, किन्तु सुन्दर बँगला हैं, जिसके बड़े अहातेमे एक और गुलाबोंकी क्यारीमें बड़े बड़े, लाल-लाल और गुलाबी गुलाब फूले हुए हैं। एक और बैडमिण्टन खेलनैका छोटा-सा क्षेत्र है, जिसकी हरी घालों पर घूमना भी स्वयं आनन्दकी चीज़ है। तीसरी और एक लता-मण्डप है। चौथी ओर बँगलेके पीछे एक खुला चबूतरा है, जिस पर शामके वक अक्सर बैरिस्टर सफदर जङ्ग बैठा करते ।। बैंगलेकी बाहरी दीवारों पर हरी लता चिपकी है । सफदर साहबने आक्सफ़र्ड में ऐसी लता-चढ़े मकान देखे थे, और उन्होंने ख़ास तौर पर इसको लगवाया था। बंगलेके अहातेमें दो मोटरोंके लिये गैरिज' था। सफ़दर जंगकी रहन-सहन, उनके बँगलेकी बोहवा–सभीमें अँगरेलियत कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनके आधे दर्जन नौकर बिलकुल उसी अब-कायदेसे रहते थे, जैसे कि किसी अँगरेज़ अफसरके । उनकी कमर में लाल पटका, उनकी पक्की बँधी हुई पगड़ीमें अपने साहबका नामचित्र ( मोनोग्राम ) रहता था। सफदर साहबको विलायती खाना सबसे ज्यादा पसन्द था और इसके लिये तीन खानसामे रखे हुए थे। सफ़दर तो साहब थे ही, वैसे ही सकीनाको सभी नौकर मेमसाहब कह कर पुकारते थे । सकीनाकी कमानीदार भौंहोके अतिरिक्त रोमको निकाल कर उन्हें पतला और रगसेरंगकर अधिक काला बनाया गया था। इर पन्द्रह मिनट पर ओठों पर अधर-राग लगानेकी उसे आदत थी। किन्तु सकीनाने विलायती स्त्रियोंकी पोशाक पहनन कभी पसद ने की । पिछले साल ( सन् १९२० ई० में) जब सफदर साहब अपनी बीबी को लेकर पहले-पहल विलायत गये, तो उन्होंने चाहा कि सकीना स्कर्ट