पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३४२

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मंगलसिंह किन्तु मेरठसे उसके साथ निकले, उन हजार सिपाहियोंमें एक भी उसका साथ छोड़नेके लिये राजी न हुआ, और आखिरमें उसने वह नजारा देखा, जिसने मृत्युको मंगलसिंहके लिये आनन्दकी चीन बना दिया-- मरनेके लिये उसकी इस छोटी टुकड़ीमें ब्राह्मण-राजपूत, जाट-गूजर, हिन्दु-मुसलमानका मैद जाता रहा । सब एक साथ रोटी पकाते, एक साथ खाते, इस प्रकार उसने हिन्दुस्तानकी एक जातीयताका नमूना उपस्थित किया । | बिन्दासिंह, देवराम, सदाफलपई, रहीमख, गुलामहुसैन, मेरठ यह पाच सिपाही मंगलसिंहके साथ रह गये थे, जब कि आखिरीबार गंगामें नावपर दोनों ओरसे वह घिर गये । वैदी अंग्रेज नरनारियोंकी प्रार्थना पर अग्रज जेनरलने माफीकी घोषणा करके बहुत चाहा, कि मगलसिंह आत्मसमर्पण कर दे, किन्तु, मगलसिंहने इसे कभी नहीं माना । आज भी उससे कहा गया, किन्तु उसने गोलियोंसे इसका जवाब दिया। अखिरमें गगामें पाँच छैलाशको लेकर नाव जब वह चली, तो उसे पकड़ा गया । अअ जोंने उस समय भारतकी वीरताको पूजाकी---