पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३४१

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३४० वोलासे गंगा सामन्तशाही लूट रिश्वतकी गन्दगीको दूर करनेके लिये शिक्षित देशभक्तिकै भारी होजकी जरूरत थी, और इस वक्त उसको देना आसान न था, तो भी जो दो दिन भी मंगलसिंहके साथ रह गया, वह प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका । सिपाहियोंके बीच उनसे हँसकर बातचीत करते मंगलसिहको देखकर कोई कह नहीं सकता था कि वह इतनी बड़ी पल्टन-आखिरी वक्त उसकी सेना दो हजार तक पहुंची थी—को जेनरल होगा। साथ ही उसके इशारे पर जान देनेके लिये पल्टनको एक एक जवान तैयार था। मंगलसिहने सदा सिपाहियोंके चौकेकी रोटी खाई, सदा उनकी ही तरह कम्बल पर वह सोया, और खतरेके मुकाम पर सबसे आगे रहा। उसने बदी अँग्रेज स्त्री-पुरुषों को बहुत आरामसे रखा । उन्हें भी सेना-पतिकी भद्रताको देखकर आश्चर्य होता था, क्योंकि उस समयके युरोप में भी कैदियोके साथ इस तरहका बर्ताव नहीं देखा जाता था। मंगलसिंह रुहेलखंडके चार जिलों में गया, और उसने चारोंका बहुत सुन्दर प्रबंध किया। | नाना साहेबने ५ जून ( १८५७ ई० ) को अंग्रेजों के खिलाफ तलवार उठाई, और डेढ़ महीना भी नहीं बीतने पाया कि १८ जुलाईको उसे अंग्रेजों के सामने हार खानी पड़ी। इवाका रुख मालूम होते, मंगलसिंहको देर न हुई, तो भी उसने आजादीके झंडेको जीतेजी गिरने नहीं दिया। अंग्रेजी पल्टनने अवधकी निहस्थी जनताका कत्लेआम शुरू किया, औरतों के प्राण और इज्जतको पैरों तले रौंदा, यह सब सुनकर भी मंगलसिंह और उसके साथियोंने किसी बंदी अंग्रेज पर हाथ नहीं उठाया। वर्षाकै समाप्त होते-होते सभी जगह विद्रोहियोंकी तलवार हाथसे झुट गई थी, किन्तु रुहेलखंड और पश्चिमी अवधमें मंगलसिंह इय हुश्री या । चारों ओरसे' अग्रेज, गोख और सिख फौजें उसपर आक्रमण कर रही थीं । स्वतंत्रता सैनिकको संख्या दिन पर दिन कम होती जा रही थी। मंगलसिंहने भविष्यको समझाकर बहुतोको घर भेज दिया,