पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३४०

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मगलसिंह . E ही समझने लगे कि हम सभी जेनरल हैं। मंगलसिंहको एक हप्ता लग गया इसे समझाने में कि सिर्फ जेनरलों की फौज कभी जीत नहीं सकती । सेनामें मंगलसिंहको छोड़ उच्च सैनिक विद्याका जानकार दूसरा आदमी न था और यही बात सभी विद्रोही सेनाओं के बारे में थी। मगलसिंहको एक जगह ठहरकर शिक्षा देनेका मौका न था, उस वक्त जरूरत थी, अधिकसे अधिक जिलों में अंगरेजोंकी शक्तिको तुरत खतम करनेकी) गंगापार हो रुहेलखंडमें दाखिल होते ही इर रातको मंगलसिंहने सिपाहियोंको नियमसे अपने राजनीतिक ध्येयको बतलाना शुरू किया। सिपाहियोंको समझने में कुछ देर लगी, उनके मन में कितने ही सन्देह उठते थे, मगलसिंहने उनका समाधान किया। फिर मंगलसिंहने फ्रासकी दो क्रान्तियों ( १७६२, १८१८ ) के इतिहासको सुनाया; यह भी बतलाया कि कैसे वेल्स के अँग्रज मजदूरोंने हिन्दुस्तानमे शासन करने वाले इन्हीं अंग्रेज बनियोंके खिलाफ तलवार उठाई, और बड़ी बहादुरीसे लड़े; उन्हें अपने संख्याबलसे बनिये दबा सके, किन्तु उनके जीते अधिकारोंको बनिये छीन नहीं सके । समझकर लड़नेवाले इन सिपाहियोंका बर्ताव ही बिल्कुल बदल गया था। उनसे हर एक आजादीकी लड़ाईको मिश्नरी था, जो गाँवों, कस्बों, शहरोंके लोगोंमें अपनी बात, अपने व्यवहारसे लोगों के दिलोंमें विश्वास और सम्मान पैदा करता था। अॅग्रेजी खजानके एक एक वैसेको ठीकसे खर्च करना, जरूरत होनेपर लोगोंसे कर उगाहना--किन्तु स्थानीय पंचायत कायमकर उसे तथा लोगों को समझो उनकी मर्जी और क्षमताके अनुसार--- किसीभी चीजको बिना दामके न लेना, और मंगलसिंहका हर जगह हजारोंकी भीड़ में लोगोंका समझाना–यह ऐसी बातें थीं जिनका प्रभाव बहुत जल्द मालूम होने लगा। कुण्डके झुण्ड तरुण आजादीकी सेनामें भरती होनेके लिये आने लगे। मंगलसिंहनै सैनिक कवायद-परेड ही नही गुप्तचर, रसदप्रवन्ध अदिको शिक्षाका प्रबन्ध किया । हकीमों और वैद्योंकी टुकड़ी अपने साथ शामिल की।