पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३४

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दिवा ऋक्षश्नवा रोचना-सूनु ।' 'रोचना-सनु ! मेरी माँ का नाम भी रोचना था। ऋक्ष जल्दी ने हो तो थोड़ा बैठ ।' 'ऋक्षने धनुष और कंचुकको बरफ पर रखकर सुन्दरीके पैरों के पास बैठते हुए कहा-- तो अब तेरी मा नहीं है । 'नहीं, वह निशा-जनके युद्धमे मारी गई । वह मुझे बहुत प्यार करती थी ।'–कहते-कहते तरुणीकी आँखोमे आँसू भर आये। ऋक्षनें अपने हाथसे उसके आँसुको पोंछते हुए कहा“यह युद्ध कितना बुरा है । "हाँ, जिसमें इतने प्रियका विछोह होता है । और अब भी वह बन्द नहीं हुआ। 'बिना एकके उच्छेद हुए वह कैसे वद होगा ? मैं सुनती हूँ, निशा-पुत्र फिर आक्रमण करनेवाले हैं। मैं सोचती हूँ ऋक्ष ! तेरे जैसे ही तरुण तो वह भी होंगे ।' और तेरी जैसी ही तरुणियाँ कुरुओम भी होंगीं ।। । *फिर भी हमें एक दूसरेको मारना होगा, ऋक्ष ! यह कैसा है ? ऋक्षको इसी वक्त ख्याल आया कि तीन दिन बाद उसका जन कुरुओंपर आक्रमण करनेवाला है। ऋक्षके कुछ बोलनेसे पहले ही तरुणीने कहा लेकिन हम अब नहीं लड़े गे ।' नहीं ! कुछ नहीं लड़ गे ? हाँ, हमारी संख्या इतनी कम रह गई है कि हमे जीतनेकी आशा नहीं । फिर कुछ क्या करेंगे ? 'वोल्गा-तटको छोड़ दूर चले जायेंगे | वोल्गा माताकी धारा