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मंगलसिंह


लड़नेवाले सिपाहियों, और जिन किसानोंमेंसे वह आये हैं, उन्हें क्या लाभ होगा।”

नाना साहब―“क्या धर्म-द्रोहियोंके शासनको उठा देना उनके सन्तोषके लिये पर्याप्त न होगा?”

“यह प्रश्न आपसे ही यदि पूछा जाये तो आप क्या जवाब देंगे? क्या आपके दिल में पैशवाकी राजधानी पूनामें लौटनेकी इच्छा नहीं है? क्या नवाबजादाके दिलमें लखनऊके तख्तका आकर्षण नहीं है? जब आप लोग कार्तूस और अँँग्रेजोंके राज्य के निकालनेसे अधिककी इच्छा रखते हैं, जिसके लिये आप जानकी बाजी लगाने जा रहे हैं, तो मैं समझता हूँ, बेहतर होगा इम भी साधारण जनताके सामने उसके लाभकी भी कुछ बातें रखें।”

‘जैसे?”

“हम गाँव-गाँव में पंचायतोंको कायम करेंगे, जिसमें कम खर्च लोगोंको न्याय प्राप्त हो। हम सारे मुल्ककी एक पंचायत बनायेंगे जिस को गाँव-गाँवकी प्रज्ञा चुनेगी, और जिसका हुक्म बादशाह पर भी चलेगा। हम जमींदारी-प्रथाको उठा देंगे, और किसान और सर्कारके बीच कोई दूसरा मालिक न रहेगा―जागीर जिसको मिलेगी, उसे सिर्फ सर्कारको मिलनेवाली मालगुजारीकै पानेका हक होगा। हम कल-कारखानोंको बढ़ाकर अपने यहाँके सभी कारीगौंको काम देंगे, और कोई बेकार नहीं रहने पायेगा। हम सिंचाईके लिये नहरे, तालाव और बाँध बनायेंगे, जिससे करोड़ों मजदूरों को काम मिलेगा, देशमे कई गुना वेशी अनाज पैदा होगा और किसानोंके लिये बहुतसे नये खेत मिलेगे।”

मंगलसिंहकी बातों पर किसीने गंभीरतापूर्वक विचार नहीं करना चाहा। सबने यह कहकर टाल दिया कि यह तख्तके हाथमे आनेके बादकी बात है।

चारपाईपर लेटनेपर बड़ी देर तक मंगलसिंहको नींद नहीं आई। वह सोच रहा था—यह साईसका युग है। रेल, तार, स्टीमर जादुको

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