पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३३६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

मंगलसिह उनके पैजावको पराजित किया, उसे स्मरण रखते हुए वह बदला लेना चाहेंगे। अँग्रेज बड़े होशियार हैं नाना साहेव ! नही तो पेशवा और नवाव अवधकी भाँति यदि उन्होंने दलीपसिंहको भी भारतमें कहीं नजरबंद कर रखा होता, तो आज हम सारी सिख पल्टनको अपनी और मिलाने में बड़ी आसानी होती । खैर, हमें याद रखना चाहिये कि सिख, नेपाल और रियासतोंकी पल्टनें हमारे साथ नहीं हैं, और जो देशके युद्धम छमारे साथ नहीं है, उन्हें हमें अपने विरुद्ध समझना चाहिये ।” "आपका कहना ठीक है । गकुर साहेब ! नानाने कहा "लेकिन यदि आरभिक अवस्थामै हमने सफलता प्राप्तकी तो फिर किसी देशहोहीको हमारे खिलाफ आनेकी हिम्मत न होगी ।" । “एक बातका हमे और इन्तिजाम करना चाहिये। यह काम युद्ध छिड़ने पर करना होगा, किन्तु इसके लिये आदमियोंको अभीसे तैयार करना होगा । लोगोंको समझाना है, कि हम देशको स्वतंत्र करनेवाले सैनिक हैं । पूरबके प्रतिनिधिने कहा--क्या इसके लिये हमारा अँग्रेजोंसे लोहा तेना काफी नहीं हैं ? मगलसिह-हर जगह चौवीसों घंटे लोहा नहीं बजता रहेगा। हमारे देशमें बहुतसे डरपोक या स्वार्थी लोग हैं, जिनको अँग्रेजी अजयेता पर विश्वास है । वह तरह-तरहकी खबरे फैलायेगे। मैं तो समझता हूँ पूरब, पच्छिम और मध्य तीन भागों में बाँटकर हम हिंदी, उर्दू में तीन अखबार छापने चाहिये ।” नाना साहय--"आपको अंग्रे जौका ढग ज्यादा पसन्द है कुर साहब ! किन्तु आपने देखा न कि विना अखबारके हमने कार्तसको बातको फैलाकर कितना लोगोको तैयार कर लिया। मंगलसिह–लेकिन लहाईके बीच में हमारे खिलाफ अॅग्रेजोंके नौकर-चाकर जो बातें फैलायेंगे, उसके लिए कुछ करना होगा नाना साहव ! यह सभव नहीं हैं कि हम अंग्रेजोंके सारे शासन-यन्त्रको एक