पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३३४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

मंगलसिंह खाई १ वह तो बिल्कुल नहीं कम हुई, बल्कि, यदि विद्रोह सफल हुआ, तो धर्मके नाम पर उभाड़े निरक्षर सिपाही अल्लाह और भगवान्के कृपापात्र बननेके लिये अपनेको और भी ज्यादा कट्टर धार्मिक साबित करनेकी कोशिश करते । इसके अतिरिक्त यदि दूसरा कोई ख्याल उनके दिलों में काम कर रहा था, तो वह था, गाँवों नगरोंको लूटना । यद्यपि इस दोषके भागी सिपाहियोंकी थोड़ी संख्या थी, और शायद कम ही जगहोंमें उन्होंने इसे किया भी; किन्तु हल्ला इतना हो गया था, कि ग्रामीण जनताके ऊपर उनका डाकुओं जैसा आतंक छाया हुआ था। देशको मुक्तिदात्री सेनाके प्रति यह ख्याल अच्छा नहीं था । पहिले इन बातोंको जानकर मगलसिंहको निराशा हुई । वह चेतसिंहके सिंहासनको पानेके लिये नहीं लड़ने आया था, वह अाया था समानता, स्वतत्रता और भ्रातृभावके शासनको स्थापित करने, जिसमें जात-पाँत, हिन्दूमुसलमानका भेदभाव भी वैसा ही अवाछनीय था, जैसा कि अंग्रेज पूँजीपतियोंका शासन । वह कूपमण्डूकताकी रक्षा के लिये नहीं आया था, बल्कि अया था, भारतकी सदियोंकी दीवारोंको तोड़कर उसे विश्वका अभिन्न अंग बनाने । वह आया था, अंग्रेज पूंजीपतियोंके शोषण और शासनको उठा, भारतको जनताको स्वतन्त्र हो दुनियाकै दूसरे देशोंकी जनताके साथ भ्रातृभाव स्थापितकर एक बेहतर दुनियाके निर्माणमे नियुक्त कराने। वह कारतूसकी चर्बीके झूठे प्रचारको कभी पसद नहीं कर सकता था, और न यही कि उसके द्वारा भारतमे मजहब अपनी जड़ों को फिर मजबूत करे। नाना और दूसरे विद्रोही नेता स्वयं बढ़ियासे बढ़िया विलायती शराबे उड़ाते थे, और मौका मिलने पर मद्य और शूकर-मास भक्षण करके श्राई गौराग सुन्दरियोंके जूठे ओठोंको चूसनेके लिये तैयार थे, किन्तु इस वक्त वह धर्मरक्षाके लिये सिपाहियोंका नेतृत्व करना चाहते थे । किन्तु, इन सव दोषोंके साथ जब एक बातपर संगलसिंहने ख्याल किया, तो उसे अपने कर्त्तव्य निश्चयमें देर न लगी–भारत अंग्रेज