पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३३३

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बोल्यासे गंगा नाना ( छोटा ) अवधके अंग्रेजोंके ताजा शिकार होनेके वक्तसै ही ज्यादा सक्रिय हो गया है। उसके आदमी अपने जैसे दूसरे पदच्युत सामन्तोंके पास रातदिन दौड़ लगा रहे हैं। उसके सौभाग्यसे अंग्रेज एक और गलती कर बैठे और वह गलती नहीं बल्कि नित नये होनेवाले जगत्मे जीनेका काम था—उन्होंने पहिलेकी टोपी-गोलीवाली बन्दूकोंकी जगह उनसे ज्यादा जोरदार कार्तसी बंदूकोंको अपनी फौजोंमे बाँटा। इन कार्तसको भरते वक्त दाँतसे काटना पड़ता है। अग्रेनके दूरदर्शी दुश्मनोंने इसमें फायदा उठाया। उन्होंने हल्ला किया कि कार्तसमें गाय-सुअरकी चर्बी है, जान-बूझकर अंग्रेज इन कासको सिपाहियोंको दाँतसे काटनेके लिये दे रहे हैं, जिसमे कि हिन्दुस्तानसे हिन्दू-मुसल्मानका धर्म उठ जायै, और सब कुस्तान बन जाये । काशिराज चेतसिंहके पौत्र मंगलसिंहको नाम बिजलीकी भॉति सैनिकोंमें काम करता, यह मंगलसिंह जानता था; किन्तु उसने कभी इस रहस्यको खुलने नहीं दिया। नाना और दूसरे विद्रोही नेता उसके बारेमें इतनाही जानते थे, कि वह अग्रेजी शासनका जर्बदस्त दुश्मन है, उसने विलायतमें जाकर अंग्रेजोंकी विद्या खूब पढ़ी हैं, उनकी राजनीतिका अच्छा जानकार है। विलायतमें रहनेके कारण उसका धर्म चला गया है, यद्यपि वह कृस्तानी धर्मको नहीं मानता ।। मंगलसिहको विद्रोही नेताओंके हार्दिक भावको समझनेमें देर नहीं हुई । उसने देखा कि पदच्युत सामन्त अपने अपने अधिकारको फिरसे प्राप्त करना चाहते हैं, और इसके लिये सबके अकेले शत्रुअंग्रेजों को एक होकर देशसे निकाल बाहर करना चाहते हैं। उनके लिये जान देनेवाले सिपाही उनकी नजरमें शतरंजके मुहरोंसे बढकर कोई हैसियत नहीं रखते थे। सिपाही धर्म जानेके डरसे उत्तेजित हुए । हैं, और शायद कार्तसकी चर्बीको मुंहसे काटने से बचा दिये गये होते, तो कम्पनी बहादुरकी जयजयकार वह अनन्तकाल तक मनाते, उसके लिये अपनी गर्दनको कटाते रहते है और हिन्दू-मुसलमानके बीचको