पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३३१

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३३० वोलासे गंगा एनी ! क्या पह बात करते वक्त वैसेही बहादुर चकाके रूपमें दिखलाई पइते थे, जितना कि वह बारह-बारह लाख जनताकै हस्ताक्षरों से पैशकी गईं कमकरोंकी साधारण मांगों को पालमेंटमें ठुकराते वक्त मालूम पड़ते थे। “नहीं, प्रिय ! यह सब भी डरते हैं यद्यपि प्रभुमसीहके इस १८५६ वें सालमें चाटरवाद सुनाई नहीं दे रहा है । | क्यों नही डरेंगे, एनी सामन्तोंके राज्यको पूंजीपति ही बनियाने जैसे खतमकर अपना शासन शुरू किया, वैसेही मजदूर भी इस थैलीका राज्य-खत्म करके ही छोड़ेंगे, और मानवताका राज्य कायम ही करेंगे, जिसमें धनी-गरीब, बड़े-छोटे, काले-गोरेका भेदभाव उठ जायगा--" और स्त्री-पुरुषका भी मंगी १ | हाँ, स्त्रियाँ भी पुरुषोंकी जुल्मोंकी मारी हैं। हमारे यहाँका सामन्तवाद तो अभी हाल तक सतीके नाम पर लाखों औरतोंको हर साल जलाता रहा है, और अब भी जिस तरह पर्दे में जकड़बंद जायदाद के अधिकारसे वंचित हो वह पुरुषोंके जुल्मको सह रही हैं, वह मानवता के लिये कलंक है ।। “हमारे यहाँकी स्त्रियों को तुम स्वतंत्र समझते होगे, क्योकि हमें “पर्दे में बंद नहीं किया जाता है." | "स्वतंत्र नहीं कहता एनी ! सिर्फ यही कहता हूँ, कि तुम अपनी भारतीय बहिनोंसे बेहतर अवस्था हो ।” | गुलामीमें बेहतर और बदतर क्या होता है मंगी ! हमारे लिये •पालमेंटमे वोटका भी अधिकार नहीं । बड़े-बड़े शिक्षणालयोंकी देहली के भीतर हम पैर नहीं रख सकतीं । हम कमरको कसकर मुट्ठी भरकी बना, साठ गजके धांधरेको जमीनमें सोहराते सिर्फ पुरुषोंके वास्ते तितली बननेके लिये हैं । अच्छा तो माक्र्सने यह अशा दिलाई कि भारत में उद्योग-धंधे और पूजीवादका प्रसार होगा जिसके कारण एक ओर लोगों में साहसका अधिकाधिक प्रचार और प्रयोग होगा, दूसरी ओर वहाँ