पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३३०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

मंगलसिंह . ३२९ “तब दोनोंका दो रास्ता होगा

  • दोनोंका दो रास्ता होता ही है एनी ! म कितनी पीड़ा अनुभव करती है प्रसवके वक्त, किन्तु साथ ही वह सन्तानकी प्राप्तिका आनंद भी अनुभव करती है--बिना ध्वसके रचना नहीं हो सकती । इन छोटेछोटे प्रजातंत्रों को तोड़े बिना एक शक्तिशाली बड़े प्रजातंत्रकी नींव नहीं रखी जा सकती। जब तक भारतीयोंकी भक्ति केवल उनके ग्राम-प्रजातंत्र तक सीमित है, तबतक बड़ी देश-भक्ति--सारे भारतके लिये आत्मत्यागको वह नहीं प्राप्त कर सकते। अभी अंग्रेज सिर्फ जहाज, रेल, तार जैसे अपने व्यापारके सुभीतेवाले यंत्रों को ही भारतमें फैला रहे हैं। किन्तु माक्र्सका कहना ठीक है-अब रेलोंके बनाने और मरम्मतके लिये अंग्रेज पूंजीपति भारतीय कोयले लोहेका इस्तेमाल करने के लिये मजबूर हैं, तो कितने दिनों तक वहीं सस्तेमें इन सामानोंको तैयार करने से वह परहेज करेगे १ भारतीय दिमाग भी साइसके इन चमत्कारोंको अपने सामने देखते हुए कबतक सोया रहेगा ?

अर्थात् भारतमें भी उद्योगधंदा और पूजीवादको फैलनी लाजिमी है।" "जरूर | अब इगलैंडमे सामन्तवादी जमींदारोंकी प्रभुता नही है, एनी । “हाँ, सुवार कानून ( १८३२) ने इंगलैंड के शासनकी बागडोर पूजीपतियों के हाथमें दे दी है ? “या पूंजीपतियोंके शासनारूढ़ होनेकी सूचना है, वह कानून ।” | तुम्हीं ठीक कह रही हो। चार्टिस्टोंकी सभाओं और पत्रोंने तुम पर असर किया है, एनी १५ | सभाओंके वक्त तो मुझे उतना होश न था, कुछ धूमिल सी स्मृति है । हाँ, चाचा रसल–जानते हो मंत्रिमडलमें वह चार्टिस्टोंके जबर्दस्त दुश्मन थे-के मुंहसे मैने कितनी ही बार इस खतरनाक आन्दोलनको बात सुनी है।”