पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३२९

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३२८ बोला से गगा पास थोड़ी दूर ही तक था, और वह अपनेको मुसाफिर समझते थे,पंचायतोंको नुकसान पहुँचाना चाहा था, किन्तु पीछे उन्होंने पंचायतों के स्वायत्तशासनको मंजूर किया । यह अंग्रेज शासक, और उससे भी खास कर इंग्लैडका अमींदार कार्नवालिस् ही था, जिसने आम-प्रजातंत्रको बर्बाद करनेका बीड़ा उठाया, और कितने ही अंश तक सफलता पाई, किन्तु उतनेसै शायद वह जल्दी न टूटती । मकै प्रजातंत्र और उसकी आर्थिक स्वतत्रता पर सबसे घातक प्रहार पड़ा है, मानचेस्टर लंकाशायर के कपड़े, शेफील्डकी लोहेकी चीजों, तथा इसी तरहके और कितने ही यहाँसे जानेवाले मालका ! १० जुलाई १८२२ को कलकत्ता पहिला मापसे चलनेवाला जहाज ( स्टीमर ) पानी पर उतारा गया। उसने साथ ही गाँवके आर्थिक प्रजातंत्रकी रही सही नीत्रको भी खतम कर दिया । हिन्दुस्तानके बारीक मलमलकी खान ढाका अब दो तिहाई वीरान है एनी ! और गाँवोंके जुलाहकी हालत मत पूछो । जो भारतीय गाँव अपने लोहार, कुम्हार, जुलाई, कतिनोंके कारण अपनेको स्वतंत्र समझता था, अब उसके ये कारीगर हाथ पर हाथ धरे बैठे भूखे मर रहे हैं, और उनके लिए लंकाशीयर मानचेस्टर, बर्मिघम, शेफील्ड माल भेज रहे हैं। सिर्फ कपड़ेको लेलो, १८१४ ई० में बृटेनको भारतसे १६, ६६, ६०६ थान कपड़ा आया था, और १८३५ ई० में ३, ७ ६, ८६ थान । इन्हीं दोनों सालोंमे हमारे यहाँ ६,१८,२०८५,१७, ७७, २७७ गज विलायती कपड़े का जाना बढ़ गया । अब ढाकाके मलमलको तैयार करनेवाला भारत अपनी रुईको विलायत मैल कपड़ा बनवा रहा है। और कितना ?--हालहीका आँकड़ा लेलो ई० १८४६६ में १०, ७५, ३०६ पौंडकी कई यहाँ आई । कितनी क्रूरता, कितना अत्याचार | किन्तु, मेरे गुरु कहते हैं, हमारा दिल रोता है, विदेशियोंके इस अत्याचार के लिये, किन्तु इमारी बुद्धि खुश होती है, इस पुराणपणी गढके पतनसे ।