पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३२८

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मगलसिंह रानी विक्टोरियासे नहीं बल्कि सारी दुनियाके मुकुटधारी शिरोळे भयंकर शत्रुओं कार्लमाक्र्स और फैडिस् एन्जैल्तसे है । “अभी जब भारत पूंजीवादी दुनिया, और उसकी शक्तिको ही ज्ञान नहीं रखता, तो वह मार्कसके साम्यबादको कैसे समझ पायेगा ! "मार्कससे कभी भारतके वारेमें भी तुमसे वात-चीत हुई है। "कितनी ही वार और मुझे आश्चर्य होता है, यहाँ बैठे बैठे कैसे उसको भारतके जीवन-प्रवाहका इतना ज्ञान है । लेकिन यह कोई जादूका चमत्कार नहीं है। यहीं लंदनमें पिछले तीन सौ वर्षोंमें भिन्न-भिन्न अंग्रेजोंने भारतके बारे में जितना ज्ञान अर्जनकर लिपिवद्ध किया, वह सब मौजूद है। मार्क्सने उन गर्द-पड़ी पोथियोंझो बड़े ध्यानसे उलय है, और जो कोई भी भारतीय यहाँ मिल जाता है, उससे पूछ पूछकर वह अपने निर्णयकी परीक्षा करता है। “माक्सके भारतके भविष्यके वारे में क्या विचार हैं ?

  • वह भारतके योद्धाओंकी वीरताकी बड़ी प्रशंसा करता, वह हमारे दिमागकी दाद देता है; किन्तु हमारी पुराणपंथिताको भारतका सबसे बड़ी शत्रु समझता है, हमारे गाँव स्वयंधारी छोटे-छोटे प्रजातंत्र हैं।"

“प्रजातंत्र १ सारा देश नहीं । उसका एक जिला क्या दो गाँव मिलकर भी नहीं, सिर्फ एक अकेला गाँव । किन्तु, सभी जगह नहीं, जहाँ लाई कार्नवालिसने अग्रेज़ी नकल पर जमींदारी कायम कर दी, वहाँका ग्रामप्रजातंत्र पहिले खतम हो गया। इस ग्रामप्रजातंत्रका संचालन जन-सम्मत पाँच या उससे अधिक पंच करते हैं। पुलीस, न्याय, आबपाशी, शिक्षा, धर्म आदि सभी विभागोंका वह संचालन करते हैं, और बहुत ईमानदारी, बुद्धिमत्ता, न्याय और निर्भयताके साये गाँवकी एक-एक अंगुली जमीन था छोटेसे छोटे आदमी इतकी रक्षाके लिये अपनी पंचायतके हुक्म पर गाँवका बड़ा या बच्चा हर वक्त जानेके लिये तैयार रहता है। मुसलमान शासकोंने पहिले पहिल–जब कि उनका राज दिल्ली के आस