पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३२७

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३३६ वोगासै गंगा रहता । मुझे हिन्दू धर्मके बारे में बहुत कम सुननेका मौका मिला, यदि कुछ मिला, तो पादरिनके मुखसे । वह कहा करती थीं, कि तुम्हाराही भाग्य है वेटा ! जो तुम्हारी माँ बच गई, नहीं तो तुम्हारे बापके मरने के बाद उन्हें लोग जिन्दा जलाकर सतीकर डालना चाहते थे। मेरी माँ का जिन्दा जलाया जाना—सती-और हिन्दू धर्मको एक समझकर तुम्हीं समझ सकती हो एनी । ऐसे धर्म के लिये *अपार घृणाके सिवा मेरे दिलमें और क्या हो सकती थी ! उस वक्त सती प्रथा बन्द होने (१८२६ ई० ) में दो सालकी देर थी। मेरी भलाईका ख्याल कर माँनै पादरिनकी बात मान ली, और मुझे पढ़ने के लिये कलकत्ता भेज दिया । कलकत्तामें जब मै पढ़ रहा था, तब माँको सन्देह हुआ कि पादरिननै मुझे ईसाई बनानेके लिये, यह सब कुछ किया है। अच्छा हुआ, जो माँको पहिले न मालूम हुआ, नहीं तो मुझे अपनी आँखे खोलनेका मौका न मिला होता । । , बच्चोंकी पढ़ाईका क्या भारतमें ख्याल नहीं किया जाता है। “मुझे पढ़ाया जाता, किन्तु तेरह सौ वर्ष पहिलेके लिये जो विद्या लाभदायक होती, वहीं । । *फिर इंगलैंड आनेके लिये माँकी आज्ञा कैसे मिली आशा मिलती ? मैं बिना पूछे चला आया। पादरीने मददकी । कैम्ब्रिजमें पढ़नेका इन्तिजाम कर दिया। यहाँसे मैंने जब कुशल अनिन्दका सामाचार भाँको लिखा तो उसने आशीर्वाद मैजा । वह पचपनसे ऊपर हो गईं मालूम होती है, किन्तु हर चिट्ठीमें चले आनेकै लिये लिखती है । , और तुम क्या जवाब देते हो ?" जवाब क्या बहाना । वह समझती हैं, मैं राजधानीमें हैं, इग्लैंडकी रानीसे मेरी मुलाकात है, और किसी वक्त मैं चेतसिंहकी गद्दीका मालिक होकर लौटुंगा ।" "उस बेचारी गंगाकी पुजारिनको क्या मालूम कि तुम्हारी मुलाकात