पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३२६

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मंगलसिंह हमारे पादरीकी चिट्ठी बनारससे जब तब आती रहती है और उसके जरिये मैं भी माँको पत्र लिखा करता हूँ। पाँच महीने पहिले तक तो वह जीवित थी एनी !' तो तुम पहिले ईसाई न थे ? नहीं मेरी माँ अब भी हिन्दू हैं। मैंने पहिले चाहा था, उसे भी ईसाई बनाना, किन्तु अब-." अब तो तुम भी मौके साथ गंगामाईको फूल चढ़ा प्रणाम करोगे ?" और पादरी साहेब कहेंगे इसने ईसाई धर्म छोड़ दिया ।" , तुम ईसाई कैसे हुए है। "कोई खास अन्तःप्रेरणाको सवाल न था, बनारसमें भी अग्रेज पादरी और पादरिने ईसाई धर्मका प्रचार करती हैं, किन्तु वनारस स्वयं हिन्दुओंको रोम है, इसलिये उन्हें उतनी सफलता नहीं होती । एक-बार एक डाक्टर पादरीने मैरी माँका इलाज किया था, जिसके बाद उनकी स्त्री मैरे घरमें आने-जाने लगीं । मेरी माँ और उनमें परिचय ज्यादा बढ़ गया । मैं छोटा था, और मुझे वह अक्सर गोद लिया करती

  • "तुम लड़कपनमें भी बड़े सुन्दर रहे होगे, मंगी ! कौन तुम्हें गोदमे लेना न चाहता है | "फिर उसी पादरिनने माँ को समझाया, कि बच्चेको अंग्रेजी पढ़ाश्री । पाँच छै ही वर्षसे पादरीने मुझे अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया। मी अपने परिवारके अतीतके वैभवकै बारेमें सोच रही थीं, और वह मनही मन आशा रखती थीं, कि शायद अंग्रेजी पढ़ कर मेरा बेटा बंशकी लक्ष्मी लौटानेके लिये कुछ कर सके । मैं तीन वर्षका था, तभी मेरे पिता मर गये थे, इसलिये माता हीको सब कुछ करना था। हमारी सम्पत्ति तो राज्यके साथ चली गई थी, किन्तु माँ के पास अपनी सासुके दिये काफी जैवर ये, और मेरे मामा भी अपनी बहिनका ख्याल रखते थे। आठ वर्षका होनेके बाद मैं ज्यादा पादरी और पादरिनकै घरपर