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मंगलसिंह


(१८३६ ई०), बिजलीकी रोशनी (१८४४ ई०), देखनेके लिये नई और आश्चर्यजनक चीजें ही थीं, किन्तु, जब केम्ब्रिज मुझे उनके बारे में पढने तथा रसायनशालामें प्रयोग कर देखनेका मौका मिला, तो मुझे समझमें आने लगा कि दुनियाके भविष्यमे क्या लिखा है।" सचमुच, तुम्हें इंग्लैंडमें आना अंधेरे से उजालेमें आनासा मालूम हुआ ? उन्हीं अर्थों में, जिन्हें अभी मैंने बतलाया, नहीं तो भारत छोड़ते वक्त मेरे मन में सिर्फ दो ख्याल थै--एक तो अपने प्रिय इष्ट देवता प्रभु मसीहके भक्तोंके देशको देखेंगा, दूसरे अपने कुली खोई राजलक्ष्मी- को लौटानेकी कोशिश करूंगा।" "कितनी ही बार मैंने चाहा, तुमसे तुम्हारे बारे में पू, लेकिन बातें ऐसे ही भूल गईं, आज मगी ! उसे कहो ।' | "जिसने मेरे जीवनकी दिशा बदल दी, उससे कहने में मुझे क्या उच्च होगा। चलो प्यारी एनी ! टेम्सके इस शान्त संत पर। टैग्स उतनी बड़ी, उतनी सुन्दर नहीं है; जितनी हमारी गंगा, तो भी कितनी ही बार जब मैं टेम्स को देखता हूँ, तो गंगाकी मधुर स्मृति जाती है । एनी ! तुम जानती हो, ईसाई ईश्वर ईसामसीह को छोड़ बाकी सारी पूजाको कुफ समझते हैं, और घृणाकी दृष्टिसे देखते हैं, किन्तु टेम्सने ईसाईसे एक बार फिर मुझे काफिर बनाया। मैंने अपनी हिन्दू काफिर माँ को बड़ी भकिसे फूल चढ़ा गंगाको प्रणाम करते देखा ।” अव दोनों के किनारे पहुँच गये थे। उन्होंने पत्थरके एक चबूतरे पर आसीन हो टेम्सकी और मुंहकर लिया। कनटोप जैसी सफेद टोपीसे निकलकर गालोंपर लटकती ऐनीकी सुनहली जुल्फे हवाके झोंकेसे लहरा उठीं । मंगलने उन्हे चूमलिया, फिर अपनी बात प्रारम्भ की--- | "इस टेम्के किनारे से कितनी ही बार मैंने मानस फूल अपनी गंगाको अर्पित कियै ।” ने ईस बड़ी भकिनेर पहुँच कर लिया । कनक इबाके