पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३२३

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१८-मंगल सिंह काक्ष-१८५७ ६० वह दोनों आज टावर देखने गये थे। वहीं उन्होंने उन कोठरियोंको देखा, जिनमें राजाके विरोधी जिन्दगी भर सड़ा करते थे। उन सिकंलो, कुल्हाड़ों तथा दूसरे हथियारोको देखा, जिनसे राजा साबित करते थे, कि जीवन-मरण उनके हाथमे है, और सही मानेमे वह पृथिवी पर ईश्वर के युवराज या यमराज हैं । लेकिन सबसे ज्यादा जिस चीबने उन्हें अकर्षित किया, वह था वह स्थान जहाँ इग्लैंडके राजा-रानियोंके शिर कटकर भूमि पर लुण्ठित हुए थे। एनी २सलने आज भी उसके हाथमें अपने कोमल हाथोंको दे रखा था, किन्तु आज उनकी कोमलताका कुछ दूसरा ही असर उसके ऊपर पड़ रहा था। जान पड़ता था, फाराडेकी बिजली--जिसे ग्यारह साल ही पहिले ( १८४५ ई०) उस वैज्ञानिकने आविष्कृत किया था—की भौति एक शक्ति निकलकर एनीके हाथसे उसके शरीरमें दौड़ रही हैं। मंगल सिने कहा'एनी ! तुम बिजली उद्गम ( बैटरी ) हो, क्या है। सा क्यों कहा मंगी है। मैं ऐसा ही अनुभव करता हूँ। सोलह साल पहले जब इंग्लैंडकी भूमि पर मैने कदम रखा, तो जान पड़ा अंधेरे से उजाले में चला आया, मुझे यहाँ एक विशाल दुनिया-लंबाई चौड़ाई हीमे नहीं, बल्कि भविष्यके गर्भ में दूर तक बढ़ती दुनिया--दिखाई पड़ी। चुकंदरकी चीनी ( १८०८ ई० ), भापको जहाज स्टीमर (१८१६ ई०), रेलवे ( १८२५ ई० ), तार (१८३३ ई०), दियासलाई ( १८३८ ६० ), फोटो