पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३२१

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३२० "वोगाचे गा सवेरै रेखाको दूध नहीं आया । म्यादाके जाने पर रेखाने गायभैसके न होनेकी बातकी । मालिकले पाँच मुसंडे प्यादोंको हुक्म दिया “जाओ, हरामजादेकी औरतका दूध दुहकर लाओ ।” गाँवके कई आदमी वहाँ मौजूद थे, किन्तु उन्होंने यही समझा, कि म्यादा रेखाको पकड़ कर लायेंगे । रेखाको बिना कुछ कहने सुननेका मौका दिये प्यादोंने पकड़कर मुश्क बाँध ली । फिर दो घरमे घुस मॅगरीको पकड़ लाये। वेबस रेखा खून भी अज्ञोंसे देख रहा था, जब कि उन्होंने चिल्लाती हुई मॅगरीके स्तनको पकड़कर गिलासमें सचमुच कई धार दूधी मारी प्यादे रेखाको वैने ही बँधा छोड़ चले गये ।। मॅगरी शर्म के मारे वहीं मुंह छिपाये बैठी रही। रेखाने भूली हुई जबानको कुछ देर में पाकर कहा “मगर मत लजा। आज हमारे गाँवकी पंचायत जिंदा रही होती, तो बादशाह भी ऐसा न कर सकता था। किन्तु इस बेइज्जतीका मज़ा चखाऊगा। यदि अमन अ रिके बेदका हुआ तो दीवान और -रामपुरके भुगके कुलभ कोई रोनेवाला भी नहीं रहेगा । इस अपमान का न्याय यही मेरे हाथ करगे, मगरी, आ मेरे हाथोंको छुड़ा ।” | मंगराने सावन-भादों बनी आँखों के साथ ही रेखाकी मुश्कोंको खोल दियो । उसने भीतर जा सुखारीको गोंदमें लेकर उसके मुंहको चूमा, फिर मगरी से कहा-- "इस धरसे जो निकालना हो निकालकर तुरन्त नैहर चली जा, मैं इस घरमे श्राग लगा रहा हूँ ।” | मगर। रेखाकी आवाज पहिचानती थी। उसने बच्चे और दो तीन कपड़ों को लिया फिर रेखाके पैपर पड़ गई। रेखाने स्वरको अत्यन्त काभल करके कहा “तेरी इज्जत, नहीं गावभरकी इज्जतका बदला लेना होगा। जा और सुखाकी बतलाना कि उसका बाप कैसी थी। देर न कर, मैं चला बोरसीसे आगे निकालने ।