पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३२०

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रेखा भगत • ३१६ गोराइत दीवान जी ( पटवारी के लिये लौका तोड़नेके लिये उन पर चढ़ गया। उस वक्त रेखा भगत घरके भीतर सुखारीको गोदमें ले पुचकार रहे थे। छानके दबने और चरचरानेकी आवाज सुनाई देते ही रेखा सुखारीको चटाई पर रख बाहर चले गये । देखा गोराहत छत पर चढ़ा लौका तोड़ रहा है, तीन तोड़ चुका है, चौथे पर हाथ डालने जा रहा है। रेखाके शरीरमें आग लग गई है। उन्होंने आधै गाँव तक सुनाई देती अवाजमे डाँटकर कहा कौन हैं, हो ! दीवान जीके लिये लौका तोड़ रहे हैं, देख नहीं रहे हो ।-- गोराइतने बिना शिर उठाये कही। रेखाने डपटकर कहा-“हाथ गौड़ बचाये चुपकेसे उत्तर आओ, सुनते हो कि नहीं है। •"मालिकके गोराइत ( गाँवकै चपरासी ) का ख्याल है न ?” | "खूब ख्याल है। भलमनसी इसमें है, कि लौकाको वहीं छोड़कर उतर आओ।" गोराइते चुपकैसे उतर आया। दीवानजी सब सुन खूनकी पेंट उस वक्त पी गये। उन्होंने माघ महीनेमें मालिकके आने के वक्त के लिये इसे छोड़ रखा । मालिकके आने पर वही गराइत शामको रेखा भगतके घर पर आकर बोला-"कलसे सवेरे ही मालिककै लिये दो सेर दूध पहुँचाना होगा । “हमारे पास भैस गाय नहीं है, दूध कहाँसे पहुँचायेंगे ?" जहाँसे हों, मालिकका हुक्म है । दीवान तो जानता ही था, कि रेखा भगतके पास गाय भैस नहीं है, किन्तु, उसे तो अब रेखाको ठीक करना था । शामको ही मालिकसे उसने रेखाकी सरकशीको खसरा खोल दिया, और यह भी कहा कि सारा गाँव बिगड़ता जा रहा है। मालिकने रातही को तैकर लिया।