पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३१९

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११८ वोल्गासे गंगा | अगहनमें जब मंगरीने एक बेटा जना तो रेखाको और आश्चर्य हुआ । अपने पचास साल पर नही क्योंकि तीसरेकी स्त्री मंगरी तीस ही सालकी थी, और कई मरे बच्चोंकी मा रह चुकी थी बल्कि अकालमें जब पहिलेकै हाड़-चामको बचाये रखना मुश्किल था, तब मंगरीने एक जीवको कैसे जिलाया । सूखा ( अकाल ) में पैदा होनेके कारण रेखाने लड़केका नाम सुखारी रखा ।। माघके महीने में रामपुरके मालिक अपने हाथी घोड़े, सिपाही-प्यादे के साथ दयालपुर आये। रेखाने सुना था, कि मालिकके घर एक भी बबुआ-बुई नहीं छीजे, अकालमें भी उनके यहाँ सात वर्षका पुराना चावल चल रहा था । दयालपुरमे मालिककी कचहरी गाँवकै एक ओर पर थी। उसके सामने पचीस एकड़को आमका एक बाग लगाया जाता था, जिसके सींचने-खोदनेका काम दयालपुरवालको मुक्त करना पड़ता था। मालिकने पचास-पचास अमोला एक एक घरके जिम्मे लगा दिया था, अमौला सूखने पर सवा रूपया डड देना पड़ता । रेखाके आगे आने वाली पीढ़ी जमींदारी शानको सनातन चौज मानने जा रही थी, उसके लिये सोबरन राउत और रेखा भगतका बतलाया जमीदारीकै पहिलेका जमाना तथा गाँव में पंचायतों का राज, कहानी होता जा रहा था। मालिक के प्यादे अकालके बाद और शोख हो गये थे। वह समझते थे, अकाल किसानोंके मनको तोड़ने तथा मालिकके दबदवैको बढ़ानेके लिये श्रआया था। अगहनमें रेखाकी छान पर जब लौकीकी वेलमें बतिया लग रही थी, तभीसे मालिकके प्यादे मॅडराने लगे थे। लोग कह रहे थे, अकालके बाद.रेखा चिड़चिड़ा गये हैं, किन्तु, रेखाको ऐसी कोई बात नई मालूम होती थी । पर बात सच भी थी; वस्तुतः अकोलके बाद गाँवके दूसरे लोग जितने परिमाणमें नीचे उतर गये थे, रेखा उनकी तुलनामें बहुत ऊपर थे, इसीलिये उनका व्यवहार चिड़चिड़ा जान पड़ता था। रेखा गोराहत-ध्यादोंको छानके गिर्द मेहराते देख बहुत कुढ़ते थे, यद्यपि उन्होंने उसे वचनसे नहीं प्रकट किया। एक दिन