पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३१६

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रेखा भगत ऊपर था, वह मनुष्यमात्रकी समानता, स्वतंत्रता, भ्रातृभावका राज्य स्थापित करना चाहती थी । "हमारे देशके लिये भी !" “तुम मनुष्य हो कि नहीं है।' **साहबोंकी नज़र में तो हम मनुष्य नहीं जंचते ।”

  • जब तक समानता, स्वतंत्रता, भ्रातृभावका शासन सारी पृथिवी पर, वह गोरे-काले सारे मनुष्यों में नहीं कायम होता, तब तक मनुष्य मनुष्य नहीं हो सकता है। कसाई कार्नवालिस् अपने गोरे किसानों को मनुष्य नहीं मानता । फ्रासमें राजा, जमींदार तो गये, किन्तु, फिर बनियोंनै-- ईष्टइण्डिया कम्पनीके भाई बूंदोंने-राज्य संभाल लिया, जिससे समानता, स्वतंत्रता-भ्रातृ भावका अस्ली तिरगा झडा वहाँ नहीं फहरा सका।

"तो फ्रासमें राजा-बाबुओंकी जगह सेठोंका राज्य हो गया ?" “हाँ और इंग्लैड के सेठ भी हल्ला कर रहे हैं, कि जब हम सात समुंदर पार हिन्दुस्तानको राज्य चला सकते हैं, तो इग्लैंडमें क्यों नहीं कर सकते हैं इसलिये वह राज्यशक्तिको अपने हाथ में लेना चाहते हैं, यद्यपि राजाको हटाकर नहीं ।” "राजाके हाथमें, आपने कहा, इंग्लैंडमें शासनकी बागडोर है ही नहीं ।" ।। “हाँ, और मैने इन गोरे बनियोंकी करतूतें यहाँ देखीं। मुझे देश देखनेकी इच्छा थी, सुभीता देख मैंने कम्पनीकी नौकरी कर ली, नौकरी न करता, तो बनिये मुझ पर सन्देह करते, और फिर मेरा पर्यटन मुश्किल हो जाता, इसीलिये दो साल तक मै कम्पनीको नौकरी रूपी नर्कमें रहा।" भलेमानुषके लिये नर्क है साहेब ! यहाँ वहीं निर्वाह कर सकते हैं, जो सब पाप कमा, सारा अपमान सह धन जमा करने के लिये तुले हुए हैं । कार्नवालिसके किसी अनुचरकी कृपासै पापकी कमाई मुझे चार ।