पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३१५

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बोलाासे गंगा धनी लोग तो नहीं चाहते थे, और हमारी पार्लोमैट पर धनिकका ही प्रभुत्व है, किन्तु अब उनमें भी कुछ इसे बुरा मानते हैं, आखिर आदमीकी खरीद-बैच कितनी बुरी चीज है है ! तुम खुद ही समझ सकते हो। किन्तु, कितने ही आदमी पाप-पुण्यके ख्यालले दासता उठानेके पक्षपाती नहीं हैं, बल्कि आजकल कारखानों में लोहेकी कलें काम करती हैं उनका दाम ज्यादा होता है, दास उनकी पर्वाह नहीं करेंगे। देखते न हो, बारीक काम दासको नहीं दिया जाता । जिसकी जिन्दगी-मौतसे तुम रातदिन खेल किया करते हो, वह तो मौका मिलते ही तुम्हारा भारी नुकसान करके बदला लेना चाहेगा ।। "माँ और बछियाको अलगकर बेचनेकी तरह जब मैं किसी दासीको अपने बच्चोंसे अलगकर बिकते देखता हूँ, तो मुझे यह बहुत असह्य मालूम होता है।

  • जिसे असह्य न मालूम हो वह आदमी नहीं है ३ !'
  • मैं सोच रहा था, फ्रॉसमें बिना राजाका राज, क्या कहते हैं उसे साहेब ११ ।

“प्रजातंत्र । “प्रजातंत्र क्या राजतंत्रसे अच्छा होता है ? "प्रजातंत्र सबसे अच्छा राज्य है, ३] शाह शाहजादों, बेगम और शाहनादियोंके ऊपर देशकी कमाईंका भारी भागे खर्च हो जाता है। पंचायती राज्यको उससे ज्यादा न्याय, ज्यादा पक्षपातहीनता, और -सहानुभूति रवैगी ।" । | "हाँ, मैंने पहिले अपने गाँवके पचायती कारोबारको देखा था, उसमें सचमुच ज्यादा न्याय होता था, और खर्चमै आदमी उजड़ भी नहीं जाता था; किन्तु जबसे कार्नवालिसके जमींदारोंने आकर पंचायतको दबा दिया, तबसे लोग तबाह हैं। यह ठीक है दे ! किन्तु फ्रीसको जनताको उद्देश्य प्रजातंत्रसे भी