पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३१४

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रेखा भगत ३१३ जमींदार जागीरदार आजकल थरथर काँप रहे हैं। और इग्लैंडमें भी फ्राँसवाली बात हुई होती, किन्तु एक और बातने उन्हें बचा दिया, मुझे इसका अफसोस है, दे ! "किस बातने, साहेब १२ "देखते नहीं हो, विलायती कारखानोंका कितना माल हिन्दुस्तानकी बाजारोमै पट रहा है ? तुम्हारे यहाँके जुलाई, सुतकत्तिर्ने वैकार हो रही हैं, और हमारे यहाँ के सेठोंने अपने कारखाने खोलकर उनमे जमींदारोंके अत्याचारसे भूखों मरते लोगों को काम दिया, जिनका बनाया माल यहाँ पहुँच रहा है। अभीतक हमारे यहाँ कल हायसे चलती थी, किन्तु अब भापसे इंजन बन रहे हैं, जिनसे चलनेवाले कर्षों के कपड़े और सस्ते होते हैं । अपने यहाँकै कारीगरोंको चौपट समझो चौपट । हमारे यहाँकै कारीगर भी चौपट हो गये हैं, किन्तु अब उन्हें इन कारखानोंमें मजूरी करके पैट पालने भरको कुछ मिल जाता है। यदि यह कारखाने न खुले होते, तो फ्राँसकी दशा ही हमारे यहाँ भी हुई होती । आदमीको आदमीकी तरह रहना चाहिये दे! दूसरे आदमीको जो पशु मानता हैं, उसे स्वयं भी और उसके बाल बच्चेको पशु बनना पड़ता है।" 'यह ठीक कहा साहेब ! मैं अपने दास, और नौक्रको आदमी नहीं समझता रहा, किन्तु, जब वैसा ही बर्ताव साहेब लोग मुझसे करते, तो मुझे पता लगता कि आदमी के लिये अपमान कितनी कड़वी चीज है ।। दासताके वाजको उठानेके लिये विलायतमें वड़ा जोर दिया जा रहा है।" विलायतमे भी दासता मानी जाती है !

  • सारी दुनियामें अभागे नरनारियों की खरीद-वेच चल रही है, किन्तु, मुझे आशा है, विलायतमैं जल्दी ही उनके खिलाफ कानून बन जायेगा ।

"फिर दासों के मालिक घनी लोग क्या करेंगे ?"