पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३१२

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रेखा भगत वह रोज सबेरै उठकर दर्पणमें मुख देखता, और हायकी अँगुलियोंको निहारता । वह किसी दिन भी कोढ़ फूटनेको प्रतीक्षाकर रहा था, ब्राह्मणीके सतीत्व भंगका दंड, उसके विचारमें, यही होनेवाला था। साहेबकी झिड़कियों, गालियों, ठोकरोंको सहते सहते वह तंग आगया था, इसलिये अभी नौकरी करनेकी उम्र होने पर भी घर भरके मर जानेसे नौकरीसे इस्तीफा दे गाँवको लौट रहा था । बीस वर्ष तक चुपचाप बर्दाश्त किये अपमानकी आग उसके दिलमें भभक रही थी । जब उसने कोलमैनको अपनेसे भी ज्यादा कम्पनी और उसके कर्मचारियोंका शत्रु देखा; तो धीरे धीरे दोनों खुलकर बातें करने लगे । कोलमैन एक दिन कह रहा था | "ईस्ट इंडिया कम्पनी व्यापारके लिये बनाई गई थी, किन्तु पीछे इसने लोगों को लूटना शुरू किया। देखते नहीं, जितने साहेब यहाँ आते हैं, जल्दी से जल्दी लखपती बनकर देश लौट जाना चाहते हैं । छोटे बड़ेकी यही हालत है ! क्वाइवने ऐसा ही किया, लेकिन उसको किसीने नहीं पकड़ा । वारन हेस्टिंग्सको अपने लोभमें चैतसिंहकी रानियों के भूखे मरने तकका भी ख्याज्ञ नहीं आया, अवधकी वैगमको उसने कंगाल बनाया; किन्तु, उसको हमारे देशवालोंने नहीं छोड़ा । सजासे तो बँध गया, किन्तु कई वर्षोंके मुकदमेमें जो कुछ कमाया था, चला गया। "किसने मुकदमा चलाया, साहेब ! “पार्लोमॅटने । हमारे यहाँ राजा मनमाना नहीं कर सकता, मनमानी करने के लिये एक राजाकी गर्दनको हम कुल्हाडेसे काट चुके हैं, और वह कुल्हाड़ा अब भी रखा हुआ है। पार्लमेंट पंचायत है है। जिसके अधिकांश लोगोंको देशकै धनीमानी लोग चुनते हैं, और कुछ बड़े बड़े जमींदार खान्दानके कारण उसमें लिये जाते हैं । जमींदार कितने दिनोंसे होते आये हैं साहेब ! "हमारे यहाँकी देखादेखी हिन्दुस्तानमें जमींदारी कायम हुई है दे।