पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३११

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

३१० वोगासे गंगा है। और पटना, गाजीपुर, मिर्जापुर जैसे तिजारती शहरोंके घाटों पर देखते, तो गंगाकी सारी धार बड़ी बड़ी नावोंसे हॅकी दिखाई पकृती । पटनासे एक बजरा ( बड़ी नाव ) नीचैकी ओर जा रहा था, जो शौर, कालीन आदि कितनी ही चीजे विलायत ले जा रहा था। पटनासे कलकत्ता पहुँचने में से ज्यादा लगता है, इसलिये तिनकौड़ी दे और कोलमैनमे धीरे धीरे धनिष्टता बढ़ गई । यद्यपि शुरूमें एक दूसरे से मिलनेमे वह हिचकिचाते थे। तिनकौड़ी दे के लिए नकली जुल्फी-चोटी ( हिंगू ) पाँवमे सटे सुत्थन घंडीके फीतोंमें टंके बटन काले कोटके साथ चरका ( सफेद ) मुँह बड़े रौब और भयकी चीज़ थी; किन्तु, बातका प्रारम्भ कोलमैन हीने किया, इसलिये धीरे-धीरे तिनकौड़ीकी हिम्मत बढ़ चली। वार्तालाप तिनकौड़ीको मालूम हुआ कि कोलमैन कम्पनीके साहिबोंसे जल-भुना है, और गवर्नरसे लेकर कम्पनीके छोटे बड़े एजंट तक पर भी प्रहार करनेमें उसको कोई हिचकिचाहट नहीं है। तिनकौड़ी भी कम्पनीके नौकरोंसे खार खाए हुआ था । बीस साल तक उसने कम्पनीके बड़े बड़े दफ़रों में किरानी (क्वर्क) का काम किया । वह गरीब घरमें पैदा हुआ था; किन्तु, उन आदमियोंमे था जिनका लोभ परिमित और आत्मसम्मानके अधीन होता है । तिनकौड़ीने जिन्दगी भरके खानेके लिये कमा लिया था, किसी पुराने एजटकी कृपासे लूटके वक्त उसे चौबीस पर्गना जिलामे चार गाँवोंकी जमीदारी मिल गई थी, जिसकी आमदनीके देखने से मालगुजारी बहुत कम थी। यह साहेबकी मेहरबानी थी, किन्तु, उस मेहरबानी के प्राप्त करने के लिये तिनकौड़ीने ऐसा काम किया था, जिसका पाप, तिनकौड़ी समझता था, जन्मजन्मान्तरमें भी नही छूटेगा। उसने साहेबको खुश करनेके लिये गाँवकी एक सुन्दर तरुण ब्राह्मणीको उसके पास पहुँचाया था। साहेब लोग उस वक्त बहुत कम अपनी मेमोंको लाते थे क्योंकि छै महीने खतरोंसे भरी समुद्र-यात्रा करना आसान न था । तिनकौड़ीकी उम्र पैंतालीस वर्षकी थी, उसका काला गठीला बदन बहुत स्वस्थ था, किन्तु