पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३१

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२८ चोलासे गैगा का शब्द होता, तो वह किल-किलाकर हँसती । खान-पान के बाद उसी आगके प्रकाश नृत्य शुरू हुआ । दिवा अपने तरुण पुत्र वसुके साथ आज नाच रही थी। दोनों नग्न मूर्तियाँ नृत्यके तालमें ही कभी एक दूसरेको चूमतीं, कभी आलिंगन करतीं, कभी चक्कर काटकर भिन्न-भिन्न नाट्य मुद्रायें दिखलातीं । सब अन जानता था कि आज उनकी जननायिका का प्रेम-पात्र वसु बना है, वसु विजयोन्माद-मक्ष माता प्रेमको ठुकराना नहीं चाहता था। | निशा-जनका मृगथा-क्षेत्र अब चौगुजैसे अधिक हो गया था, शरदके निवास के लिए उसे बिलकुल चिन्ता न रह गई थी । चिन्ता उसे सिर्फ एक बात थी, उषा-जनके मारे गये लोगोंने जो बात जीवित रहते न कर पाई, उसे अब वे मरनेके बाद प्रेत ही करना चाहत्ते थे । उसी जलै दमकी जगह प्रेत-पुर बस गया था, जिससे अकेले-दुकेले गुजरना किसी निशा-जनवालेके लिए असम्भव था। कितनी ही बार शिकारियोंने दूर तक फैली भागके सामने सैकड़ों नंगी मूर्तियोंको नाचते देखा था । स्थान-परिवर्तनके समय जनको उधरसे ही जाना पड़ता था, किन्तु उस वक्त वह भारी संख्यामें होता और दिनके उजालेमें जाता था । दिवाने तो कई बार अँधेरे में दूध-मुँहे बच्चों को जमीनसे उछलकर अपने हाथमें लिपटते देखा, उस वक्त वह चिल्लाकर भाग उठती । दिवा अब सत्तरसे ऊपरी है। अब वह निशा-जनकी नायिका नहीं है, किन्तु अब भी वह उसकी एक सम्माननीय वृखा है; क्योंकि २० वर्ष तक जन-नायिका रह उसने अपने बढ़ते हुए उनकी समृद्धिके लिए बहुत काम किया था। इन वर्षों में जनको कई बाहरी जनसे लड़ना पड़ा, जिसमें उसे भारी जन-हानि उठानी पड़ी, वो भी निशा-जन सदा विजयी रहा। अब उसके पास कई मासके लिए पर्याप्त मृगया-क्षेत्र है। दिवाके लिए यह सब भग( भगवान की कृपासे या, यद्यपि हाथकै पटके में बच्चे अब भी कभी-कभी उसकी नींदको उचाट देते।