पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३०७

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वोल्गासे गंगा दिल्ली ही जानते थे। अच्छा मकसूदाबादके हाथमे भी जब राज आया, तब भी तो एक ही राजा न था ? हमसे जो जुटता-बनता, मालगुजारी चुकाते थे। लेकिन अब इसको दो-दो राजा कहेंगे कि क्या कहेंगे ? रेखा-सोबरन भाई ! दो दो राजा हुए ही कि १ एक कम्पनीका राज दूसरे रामपुर के मंसीजीका राज ! चक्की के एक पाटमें पिसनेमें कुछ बचनेकी भी आशा रहनी है, भोला पंडित ! लेकिन दो दो पाटमें पड़कर बचना नहीं हो सकता । और इसे हम आखोंसे देख रहे हैं। मंसीजी ! तुम्हीं बतलाओं, हम लोग तो गॅवार, मूरख, अनाड़ी हैं, तुम्ही हमारे संज्ञान हो–या भोला पडित । । मुंशी-खा भगत ! कहते तुम ठीक हो । जमीदार चक्कीको दूसरा पाट है । और वह राजासे किस बातमें कम है ? | रेखा--"कम काहेको बढ़कर है, मसीजी ! गाँवकी पंचायतको अब कोई पूछता है १ रवाज है, हम लोग पाँच पच चुनकर रख देते हैं, लेकिन वह किसी काम से हाथ लगाने पाते हैं ? सब जमींदार और उसके अमला--कैला करते हैं। झगड़ा हो तो मुद्दई-मुद्दालेह दोनों ओरसे हाँड़ ( जुर्माना ) लेते हैं। पन्द्रह वर्ष भी तो नहीं बीता सोबरन राउत । कभी मर्द-औरतके झगड़े में भैंस नीलाम होते देखा है । सोबरन-अरे, उस वक्त तो सब कुछ पंचायतके हाथमें था। गाँवके पच किसी घरको उजड़ने देते, वह खून तकमें सुलह-सराकत करा देते थे, रेखा भगत ! और बाँध-खड़ नहीं देख रहे हो ? मालूम होता है, उनका कोई गर-गुपैयाँ नहीं हैं । जो पचायत चलती रहती, तो क्या कभी ऐसा होता है । ( रेखा--"नहीं होता सोबरन राउत ! अपने बाल बच्चे के मुंहमें । ज्ञाब कौन लगाता १ पानी वैशी बरसे तो अब खाड साफ करके नहीं रखी है कि वेशी पानी निकल जाये, पानी कम बरसे तो बाँध नहीं है। कि पानी रोककर रखे, जिसमे फसल सूखने न पाये ।